जन्माष्टमी क्या है और क्यों मनाई जाती है?
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, जिसे केवल जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति में मनाया जाने वाला एक महान हिंदू पर्व है। यह पर्व भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर में पड़ता है।
भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, जिन्होंने संसार में धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए अवतार लिया था। जन्माष्टमी का पर्व इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा नगरी में रात के ठीक बारह बजे, कारागार में जन्म लिया था।
पौराणिक कथा (श्रीकृष्ण का जन्म कैसे हुआ?)
मथुरा का राजा कंस, अपनी बहन देवकी से अत्यधिक प्रेम करता था। जब देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ, तब आकाशवाणी हुई कि “देवकी का आठवां पुत्र ही कंस की मृत्यु का कारण बनेगा।”
यह सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को बंदी बना लिया। उसने उनके सात बच्चों को एक-एक कर निर्दयता से मार डाला। जब आठवें संतान का समय आया, तब भाद्रपद अष्टमी की रात भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
जन्म होते ही कारागार के ताले अपने आप खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और वसुदेव ने नवजात कृष्ण को एक टोकरी में रखकर यमुना नदी पार की। उस समय यमुना का जल मार्ग देती हुई पीछे हट गई और वसुदेव बालक को लेकर गोकुल पहुँचे, जहाँ उन्होंने श्रीकृष्ण को नंद बाबा और यशोदा माता को सौंप दिया और वहाँ की नवजात कन्या को लेकर कारागार लौट आए।
सुबह जब कंस को सूचना मिली तो उसने कन्या को भी मारने की कोशिश की, पर वह कन्या देवी रूप में प्रकट होकर आकाश में उड़ गई और बोली – “हे कंस, तुझे मारने वाला तो जन्म ले चुका है।”
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जन्माष्टमी का धार्मिक महत्व
श्रीकृष्ण न केवल एक देवता हैं, बल्कि जीवन जीने की कला भी हैं। उन्होंने हमें गीता का उपदेश दिया, जिसमें कर्म, धर्म, भक्ति और ज्ञान का गूढ़ रहस्य बताया।
उनका जीवन माखन चोरी से लेकर महाभारत के युद्ध तक, अनेक रंगों से भरा हुआ है – लीला, प्रेम, राजनीति, नीति और धर्म।
जन्माष्टमी का पर्व हमें यह सिखाता है कि जब भी अधर्म बढ़ता है, तब भगवान स्वयं अवतार लेते हैं:
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥”
(श्रीमद्भगवद्गीता 4.8)
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कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी?
भारत के हर राज्य में जन्माष्टमी को अपने ढंग से मनाया जाता है, लेकिन कुछ सामान्य परंपराएं इस प्रकार हैं:
रात्रि जागरण और श्रीकृष्ण जन्म का आयोजन
रात 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म के समय शंख, घंटा, मृदंग और भजन के साथ उत्सव मनाया जाता है।
झांकी सजाई जाती है जिसमें कृष्ण जन्म, माखन चोरी, गोवर्धन लीला आदि के दृश्य दिखाए जाते हैं।
दही हांडी
महाराष्ट्र और कई राज्यों में श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की लीला को याद करते हुए दही हांडी कार्यक्रम होता है।
इसमें युवक एक पिरामिड बनाकर ऊँचाई पर लटकी दही हांडी को फोड़ते हैं – यह भगवान के माखन-चोरी रूप की स्मृति है।
व्रत और भक्ति
इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और श्रीकृष्ण के मंत्रों का जाप करते हैं।
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है।
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जन्माष्टमी का आध्यात्मिक संदेश
श्रीकृष्ण केवल एक देवता नहीं, बल्कि जीवन के हर पक्ष के मार्गदर्शक हैं। उन्होंने यह सिखाया कि –
कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।
जीवन में प्रेम होना चाहिए, पर वह अंधा न हो।
नीति और धर्म के साथ चलना ही सच्चा जीवन है।
जब बुराई हावी हो जाए, तो उसे खत्म करने के लिए संकल्प लेना चाहिए।
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निष्कर्ष
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक संस्कृति, दर्शन और अध्यात्म का उत्सव है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ हों, यदि हमारा संकल्प धर्ममय है तो हर बंधन अपने आप टूट जाएगा।
“कृष्ण हैं विश्वास का नाम,
हर संकट में जो देते हैं समाधान।”
आप भी इस जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के गुणों को अपनाएं और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।