वानरराज बाली और श्री राम  की कथा – एक वीरता, घमंड और धर्म की कहानी



भूमिका

वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड में वर्णित वानरराज बाली की कथा वीरता, बल, पराक्रम और बाद में अधर्म की ओर झुकाव का प्रतीक है। बाली को अपनी अपार शक्ति पर इतना गर्व था कि वह स्वयं को अजेय समझने लगा था। इस कथा में एक अत्यंत रोचक प्रसंग रावण के साथ भी जुड़ा है, जो बाली की वीरता का अद्भुत प्रमाण है।




बाली का परिचय

बाली वानरों के किष्किंधा राज्य के सम्राट थे। वे इंद्र के पुत्र माने जाते थे और उनमें अपार बल था। ऐसा कहा जाता है कि जब भी बाली किसी से युद्ध करता, तो वह शत्रु की आधी शक्ति अपने में खींच लेता था। इस कारण कोई भी योद्धा उसका सामना करने का साहस नहीं करता था।

उनके छोटे भाई का नाम सुग्रीव था, जो अत्यंत बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ था। बाली और सुग्रीव में प्रारंभ में अत्यंत प्रेम था, परंतु परिस्थितियों ने उन्हें शत्रु बना दिया।



बाली और रावण का प्रसंग

बाली की शक्ति का एक और अद्भुत प्रसंग रावण से जुड़ा है, जो अध्यात्म रामायण और कुछ पुराणों में मिलता है।

एक बार रावण, जो उस समय समस्त त्रैलोक्य पर विजय प्राप्त कर चुका था, अत्यंत घमंड में चूर होकर बाली को चुनौती देने किष्किंधा आता है। वह समझता है कि वह बाली को भी जीत लेगा। बाली उस समय समुद्र किनारे संध्या-वंदन कर रहे थे।

जैसे ही रावण पीछे से आकर उन पर आक्रमण करता है, बाली ने बिना पीछे देखे उसे अपनी कांख में दबा लिया। रावण लाख कोशिश करता रहा पर निकल नहीं पाया।

बाली ने रावण को कई दिनों तक अपनी कांख में दबाए रखा और संसार भर की यात्रा की। अंत में, रावण की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई। तब रावण के पितामह पुलस्त्य मुनि ने बाली से प्रार्थना की और बाली ने रावण को छोड़ दिया।

इस घटना के बाद रावण को बाली की शक्ति का ज्ञान हुआ और उसने कभी दोबारा उन्हें चुनौती नहीं दी।




सुग्रीव के साथ विवाद

एक दिन एक मायावी नामक  राक्षस मदिरा के नशे में चूर होकर किष्किंधा पर आक्रमण करता है। ओर बाली और सुग्रीव को साथ आते देख वह एक गुफा में छिप जाता है। बाली उसे मारने के लिए एक गुफा में प्रवेश करता है और सुग्रीव को बाहर खड़ा रहने को कहता है। कई दिनों तक कोई हलचल नहीं होती। फिर अचानक गुफा से रक्त बहता है। सुग्रीव को लगता है कि बाली मारा गया। तो वह गुफा को एक बड़े चट्टान से बंद कर देता है। वह दुखी होकर किष्किंधा लौट आता है और प्रजा के अनुरोध पर राज्य की जिम्मेदारी संभाल लेता है।

कुछ समय बाद बाली जीवित लौटता है और देखता है कि सुग्रीव राजा बन चुका है। वह यह मान लेता है कि सुग्रीव ने जान-बूझकर धोखा दिया। क्रोधित होकर वह सुग्रीव को राज्य से निष्कासित कर देता है और उसकी पत्नी को भी बलपूर्वक अपने महल में रख लेता है, जो कि धर्म के विरुद्ध था।




श्रीराम से मित्रता और बाली वध

सुग्रीव भयभीत होकर ऋष्यमूक पर्वत पर शरण लेता है, जहाँ बाली नहीं जा सकता था क्योंकि उसे एक ऋषि का श्राप था कि यदि वह उस पर्वत पर गया, तो मारा जाएगा।

वनवास काल में श्रीराम की भेंट सुग्रीव से होती है। सुग्रीव अपनी पीड़ा श्रीराम को सुनाता है। श्रीराम उससे मित्रता करते हैं और वचन देते हैं कि वे बाली का वध कर उसे न्याय दिलाएंगे।

बाद में जब बाली और सुग्रीव का युद्ध होता है, तो श्रीराम छिपकर एक पेड़ के पीछे से बाली पर बाण चलाते हैं और उसे मृत्यु के मुख में पहुँचा देते हैं।




बाली और श्रीराम का संवाद

मरणासन्न बाली श्रीराम से पूछते हैं कि उन्होंने छिपकर क्यों वार किया। श्रीराम उत्तर देते हैं:

> “हे बाली, तुमने अपने छोटे भाई की पत्नी को बलात रखकर धर्म की मर्यादा का उल्लंघन किया है। एक राजा का कर्तव्य होता है धर्म की रक्षा करना, और अधर्मी का दमन करना। मैं रघुकुल का वंशज हूं, और मेरा धर्म है अधर्म का अंत करना।”



बाली को अपनी गलती का एहसास होता है। वह श्रीराम को अंगद, अपने पुत्र को सौंपकर प्राण त्याग देता है।









निष्कर्ष

बाली की कथा हमें यह सिखाती है कि चाहे बल कितना भी बड़ा क्यों न हो, यदि वह धर्मविरुद्ध मार्ग पर चलने लगे, तो उसका अंत निश्चित होता है। श्रीराम द्वारा बाली वध केवल युद्ध नहीं, बल्कि धर्म की पुनः स्थापना थी।

रावण जैसे अजेय प्रतीत होने वाले राक्षस को भी बाली ने अपनी शक्ति से पराजित किया, पर अंततः बाली स्वयं अपने अहंकार और अधर्म की वजह से पराजित हुआ। यह कथा शक्ति, धर्म और विनम्रता का गहरा संदेश देती है।

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