विश्वकर्मा पूजा 17 सितम्बर को ही क्यों होती है? सम्पूर्ण कथा और तथ्य

भुमिका

भारत एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से भरा देश है। पेड़-पौधे, मिट्टी, पानी, आग, पत्थर और यहाँ तक कि लोहे के औजार भी हमारे धर्म में पूजनीय माने जाते हैं।,सभी को भगवान का रूप मानकर उसकी पूजा की जाती है पूजे जाते हैं।इन्हीं परंपराओं में से एक है विश्वकर्मा पूजा

विश्वकर्मा पुजा की तिथी और तरीख

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विश्वकर्मा पूजा हर साल 17 सितम्बर को ही मनाई जाती है। यह दिन इसलिए खास है क्योंकि इसी दिन सूर्य देव सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे कन्या संक्रांति कहा जाता है।

तारिख ‌‌‌‌‌‌‌               17 सितम्बर

तिथी                  अश्विन मास के कन्या संक्रांती को

शुभ मुहूर्त           रात्रि के 1:55 (संक्रांति समय)

इस वर्ष  कन्या राशि में सूर्य के प्रवेश (गोचर) का समय भी 01:54 से 01:55 AM बताया गया है

भारत मे हर साल 17 सितम्बर को विश्वकार्मा पुजा मनाया जाता है इस दिन लोग अपने घरों, दुकानों, कारखानों और फैक्ट्रियों में औजारों, मशीनों और धातु की वस्तुओं की पूजा करते हैं। कई जगहों पर बच्चे पतंगबाज़ी कर इस पर्व का आनंद लेते हैं।

विश्वकर्मा पूजा विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो मशीन, औजार, कला और निर्माण से जुड़े हुए हैं। यह पूजा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत खास है।

भग्वान विश्वकर्मा का परिचय

भगवान वीश्वकर्मा की जन्म कथा हर जगह अलग अलग बतायी गयी है।कई पुराणों मे बतया जाता है की विश्वकर्मा जी ब्रम्हा जी के मानस पुत्र थे तो कही ये बताया गया है।

श्लोक (स्कंद पुराण प्रभास खण्ड)

बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।
प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।
विश्वकर्मा सुतस्तस्य शिल्पकर्ता प्रजापतिः॥ 16 ॥

अर्थ
महर्षि अंगिरा के पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना, जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थीं, वे अष्टम वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनीं। उन्हीं से प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ, जो सम्पूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता और देवताओं के शिल्पकार कहे गए।

“विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः

अर्थातः जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यपार है वह विशवकर्मा है। यही विश्वकर्मा

भगवान विश्वकर्मा  जिन्हे देव शिल्पि भि कहा जाता है। जिस तरह ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता, विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारकर्ता माने जाते हैं, उसी तरह विश्वकर्मा जी को सृजन और निर्माण का देवता माना जाता है।

 भग्वान विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम वास्तुकार कहा गया है आज की भाषा मे कहे तो वे इस सृष्टि के पहले इंजिनियर थे। कहा जाता है कि उन्होंने देवताओं के लिए अद्भुत महल, पुल, विमान, रथ और शस्त्र बनाए।

निचे उनके बनाये गये कुछ अस्त्र सस्त्र और आदि वस्तुओ के नाम लिखित है।

  • स्वर्गलोक का भव्य महल,
  • श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी,
  • भगवान शिव का त्रिशूल,
  • विष्णु का सुदर्शन चक्र
  •  इन्द्र का वज्र
  • रावण की लंका नगरी

इन रचनाओं से यह स्पष्ट है कि विश्वकर्मा जी केवल देवताओं के ही नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड के महान वास्तुकार हैं।

क्यों हर साल एक ही दिन आती है विश्वकर्मा पूजा?

भारत में अधिकांश त्योहार और व्रत हर वर्ष अलग-अलग तिथियों पर पड़ते हैं। कभी होली फरवरी में आती है तो कभी मार्च में, कभी दीपावली अक्टूबर में होती है तो कभी नवंबर में। इसका कारण यह है कि ये पर्व हिंदू पंचांग की चन्द्र तिथियों पर आधारित होते हैं। चन्द्रमा का वर्ष सौर वर्ष से छोटा होता है, इसलिए प्रत्येक वर्ष 10–11 दिनों का अंतर आ जाता है और पर्वों की तिथियाँ बदल जाती हैं।

लेकिन इसके विपरीत, विश्वकर्मा पूजा हर साल एक ही दिन यानी 17 सितंबर को ही मनाई जाती है। आखिर ऐसा क्यों होता है?

सूर्य आधारित पर्व

विश्वकर्मा पूजा का आधार सूर्य की गति और राशि परिवर्तन है। जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है, तो इसे कन्या संक्रांति कहा जाता है। इसी दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।
सूर्य का यह राशि परिवर्तन हर साल लगभग नियत तारीख़ (17 सितंबर) को ही होता है। इसलिए विश्वकर्मा पूजा की तिथि बदलती नहीं है।

चन्द्र गणना

  • चन्द्रमा की गति पर आधारित होती है।
  • एक चन्द्र मास (Lunar Month) = अमावस्या से अमावस्या या पूर्णिमा से पूर्णिमा तक ≈ 29.5 दिन का होता है।
  • इस तरह 12 चन्द्र मास = 354 दिन (लगभग)।
  • जबकि हमारा सौर वर्ष (365 दिन) उससे लगभग 11 दिन बड़ा होता है।
  • इस कमी को पूरा करने के लिए हर 3 साल में एक अधिमास (लीप माह) जोड़ा जाता है।
  • हिंदू पंचांग (त्योहार जैसे होली, दिवाली, रक्षाबंधन, नवरात्रि) मुख्य रूप से चन्द्र गणना पर चलते हैं।
  • इसलिए ये त्योहार हर साल अंग्रेज़ी कैलेंडर में बदलते रहते हैं।

उदाहरण:   2024 में होली 25 मार्च को थी, लेकिन 2025 में 14 मार्च को होगी।

सौर गणना

  • सूर्य की गति और राशि परिवर्तन पर आधारित होती है।
  • जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं।
  • सूर्य हर महीने लगभग 30–31 दिन में राशि बदलता है।
  • इस तरह 12 राशियों का चक्र = 365 दिन (यानी सौर वर्ष)।
  • सौर गणना स्थिर रहती है, इसलिए इस पर आधारित पर्व लगभग नियत तारीख़ को ही आते हैं।

 उदाहरण:

  • मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को आती है।
  • पोंगल भी इसी समय आता है।
  • विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को ही होती है।

 निष्कर्ष

विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सृजन, मेहनत और तकनीकी ज्ञान का उत्सव है।
भारत जैसे देश में, जहाँ कृषि, उद्योग, कला और शिल्प परंपरा का गहरा इतिहास रहा है, वहाँ विश्वकर्मा जी की पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
यह पूजा हमें सिखाती है कि मेहनत और कौशल के बिना कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता।
आज जब तकनीक दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ रही है, तब भी मशीनों और औजारों की पूजा करके हम यह मान्यता देते हैं कि मानव का सृजनशीलता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है।

इस प्रकार, विश्वकर्मा पूजा श्रम, कला और तकनीक का संगम है जो हमें बेहतर भविष्य की ओर प्रेरित करता है।

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