भूमिका
हिंदू धर्म में दीपावली का पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है, और इन पाँच दिनों की शुरुआत होती है धनतेरस से। इस दिन का अपना अलग ही महत्व है क्योंकि इसे “धन” और “आरोग्य” दोनों का पर्व माना जाता है। शब्द ‘धनतेरस’ दो शब्दों से मिलकर बना है — ‘धन’ अर्थात धन-संपत्ति और ‘तेरस’ अर्थात कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि। इस दिन भगवान धनवंतरि और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।
धनतेरस 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
धनतेरस 2025 की तिथि:
20 अक्टूबर 2025 (सोमवार)
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 20 अक्टूबर 2025 को सुबह 10:45 बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर 2025 को सुबह 08:22 बजे
धनतेरस पूजा मुहूर्त:
20 अक्टूबर 2025 को शाम 06:55 बजे से 08:35 बजे तक शुभ समय रहेगा।
इसी दौरान भगवान धनवंतरि, मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है।
धनतेरस का पौराणिक महत्व
धनतेरस से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान धनवंतरि की उत्पत्ति से जुड़ी है।
कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों ने क्षीर सागर का मंथन किया, तो उस समय अमृत कलश लेकर भगवान धनवंतरि प्रकट हुए। वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं और आयुर्वेद के जनक कहलाते हैं। इसलिए इस दिन उन्हें आरोग्य, स्वास्थ्य और दीर्घायु के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार राजा हेम के पुत्र की मृत्यु का योग उसके विवाह के चौथे दिन ही बन गया था। ज्योतिषियों ने बताया कि उसकी मृत्यु सर्पदंश से होगी। जब वह दिन आया, उसकी पत्नी ने दीपक जलाकर पूरे घर को रोशनी से भर दिया और ढेर सारे सोने-चांदी के गहने और बर्तन सजाकर रख दिए। जब यमराज सर्प के रूप में वहाँ पहुँचे, तो उस तेज प्रकाश से उनकी आँखें चौंधिया गईं। वे बिना कुछ किए लौट गए। तभी से यह परंपरा चली कि धनतेरस की रात दीप जलाकर यमराज की पूजा की जाती है — ताकि अकाल मृत्यु से रक्षा हो सके। इसे यमदीपदान भी कहा जाता है।
धनतेरस पर पूजा विधि
धनतेरस के दिन पूजा करने से पहले घर की अच्छी तरह सफाई की जाती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मां लक्ष्मी स्वच्छ और उज्ज्वल स्थानों में निवास करती हैं।
पूजा विधि इस प्रकार है:
- सबसे पहले भगवान गणेश, मां लक्ष्मी और भगवान धनवंतरि की प्रतिमा स्थापित करें।
- कलश में जल, सुपारी, चावल और सिक्का डालकर रखें।
- धूप, दीप, पुष्प और मिठाई से पूजा करें।
- “ॐ धन धन्वंतरये नमः” मंत्र का जाप करें।
- धनवंतरि जी को तुलसी पत्र और आंवला चढ़ाना शुभ माना गया है।
- शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर दीप जलाएं और घर के हर कोने में दीपक रखें।
यमदीपदान की परंपरा:
रात को दक्षिण दिशा में घर के बाहर एक दीपक जलाया जाता है। यह दीप यमराज को समर्पित होता है ताकि परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु न हो।
धनतेरस पर क्या खरीदें
धनतेरस को खरीदारी का दिन कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इस दिन कुछ चीजें खरीदने से पूरे वर्ष घर में सुख, समृद्धि और लक्ष्मी का वास माना जाता है।
शुभ वस्तुएँ जो इस दिन खरीदी जाती हैं:
- सोना और चांदी – यह धन और लक्ष्मी का प्रतीक है।
- बर्तन – खासतौर पर तांबे, चांदी या स्टील के। ध्यान रखें कि बर्तन खाली न खरीदें, उसमें कोई मिठाई या चावल डालें।
- झाड़ू – इसे घर की दरिद्रता दूर करने वाला माना गया है।
- धनवंतरि यंत्र या लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति – इसे घर में स्थापित करना शुभ होता है।
- दीपक और पूजा सामग्री – क्योंकि दीपावली के लिए इसकी तैयारी इसी दिन से शुरू होती है।
धनतेरस और आयुर्वेद का संबंध
धनतेरस सिर्फ धन का त्योहार नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और दीर्घायु का भी प्रतीक है। भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद का जनक माना गया है। इस दिन लोग आयुर्वेदिक दवाएँ, औषधियाँ या स्वस्थ रहने से जुड़ी चीजें खरीदते हैं। कई लोग इस दिन अस्पतालों या दवा केंद्रों में भगवान धनवंतरि की पूजा करते हैं ताकि सबको अच्छा स्वास्थ्य मिले।
विभिन्न राज्यों में धनतेरस की परंपराएँ
भारत विविधताओं का देश है, इसलिए अलग-अलग राज्यों में धनतेरस मनाने की विधि और भावनाएँ भी थोड़ी अलग होती हैं।
- उत्तर भारत में, लोग घर को दीयों से सजाते हैं और नए बर्तन या गहने खरीदते हैं।
- गुजरात में, इसे धनत्रयोदशी कहा जाता है और व्यापारी अपने नए खाता-बही (लेजर) की पूजा करते हैं, इसे “चोपड़ा पूजन” कहा जाता है।
- महाराष्ट्र में, महिलाएँ नए बर्तन खरीदने के साथ घर के द्वार पर रंगोली बनाती हैं।
- दक्षिण भारत में, लोग भगवान धनवंतरि और कुबेर की पूजा करते हैं और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं।
हर जगह इसका एक ही संदेश है — “स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है।”
धनतेरस और दीपावली का संबंध
धनतेरस दीपावली की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन से ही लोग दीपावली की तैयारियाँ शुरू कर देते हैं। घरों की सफाई, सजावट, नए कपड़ों की खरीदारी और मिठाइयों का वितरण — सब इसी दिन से शुरू हो जाता है।
इसके अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली, फिर मुख्य दीपावली, गोवर्धन पूजा और अंत में भाई दूज मनाई जाती है।
यानी धनतेरस पूरे त्योहारों की श्रृंखला का पहला और सबसे शुभ दिन है।
धनतेरस से मिलने वाले जीवन के संदेश
धनतेरस हमें सिखाता है कि असली धन सिर्फ सोना-चांदी या पैसा नहीं होता, बल्कि स्वास्थ्य, परिवार और मानसिक शांति भी धन का ही रूप हैं।
भगवान धनवंतरि हमें याद दिलाते हैं कि “स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन निवास करता है।”
जब हम अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखते हैं, तभी जीवन में सच्चा सुख और समृद्धि आती है।
कुछ खास मान्यताएँ
- इस दिन नया झाड़ू खरीदने से घर में दरिद्रता नहीं आती।
- घर के द्वार पर बने “स्वास्तिक” चिन्ह से लक्ष्मी का वास होता है।
- दीपक जलाते समय पूर्व या दक्षिण दिशा में जलाना शुभ माना गया है।
- जिन लोगों के घर में कोई बीमार व्यक्ति हो, वे भगवान धनवंतरि की आराधना से आरोग्य की कामना करते हैं।
- व्यापारियों के लिए यह दिन नए व्यापार की शुरुआत का भी प्रतीक है।
निष्कर्ष
धनतेरस का त्योहार केवल धन प्राप्ति का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, सौभाग्य और समृद्धि की कामना का पर्व है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में धन उतना ही जरूरी है जितना स्वास्थ्य।
जब घर में दीप जलते हैं, तो वे सिर्फ अंधकार को नहीं मिटाते — वे हमारी चिंताओं, भय और दुर्भाग्य को भी दूर करते हैं। इसलिए धनतेरस का सही अर्थ है “स्वस्थ रहो, समृद्ध रहो और हमेशा रोशनी में जियो।”
लेख का सार:
धनतेरस हमें यह सिखाता है कि सच्चा धन वो नहीं जो तिजोरी में बंद है, बल्कि वह है जो हमारे मन में संतोष, शरीर में स्वास्थ्य और घर में प्रेम के रूप में बसता है।