काली चौदस (नरक चतुर्दशी, रूप चौदस या छोटी दीपावली)

भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर पर्व जीवन के किसी न किसी गूढ़ अर्थ से जुड़ा होता है। दीपावली के पाँच दिवसीय उत्सव में एक दिन विशेष महत्व रखता है — काली चौदस। इसे कई नामों से जाना जाता है — नरक चतुर्दशी, छोटी दीपावली, या रूप चौदस। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह हमें जीवन के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का संदेश भी देता है।

काली चौदस क्या है

काली चौदस, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दीपावली से एक दिन पूर्व आती है। इस दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण, देवी काली और यमराज की पूजा करते हैं। कुछ स्थानों पर इसे अभ्यंग स्नान का दिन माना जाता है तो कहीं इसे रूप-सौंदर्य के रूप में मनाया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य है — बुराई, पाप, नकारात्मकता और भय को दूर कर सकारात्मकता और प्रकाश का स्वागत करना।

काली चौदस 2025 की तिथि

  • तिथि: कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी
  • दिनांक: 21 अक्टूबर 2025 (मंगलवार)
  • चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 20 अक्टूबर, रात्रि 11:48 बजे
  • समाप्ति: 21 अक्टूबर, रात्रि 09:20 बजे
काली चौदस के रात्रि मै मा काली की उपासना करते लोग

नाम का अर्थ और महत्व

“काली चौदस” शब्द दो भागों में बँटा है — काली और चौदस

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  • ‘काली’ का अर्थ है देवी काली — जो अज्ञान, भय, पाप और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं।
  • ‘चौदस’ का अर्थ है कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि।

इस दिन रात्रि अमावस्या से एक दिन पूर्व होती है, जब चारों ओर अंधकार छाया रहता है। इसी अंधकार के बीच देवी काली की आराधना कर हम अपने भीतर के अंधकार को मिटाने का संकल्प लेते हैं।

नरकासुर वध की कथा

काली चौदस की सबसे प्रसिद्ध कथा नरकासुर वध से जुड़ी है।
पुराणों के अनुसार प्रागज्योतिषपुर का राजा नरकासुर अत्यंत पराक्रमी और अहंकारी था। शक्ति प्राप्त करने के बाद उसने तीनों लोकों में अत्याचार फैलाया। उसने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया और 16,000 कन्याओं को बंदी बना लिया।

देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर से युद्ध किया। युद्ध के दौरान सत्यभामा ने अपने बाणों से नरकासुर का वध किया।

जब नरकासुर का अंत हुआ तो समस्त संसार में आनंद छा गया। लोगों ने दीप जलाकर इस विजय का स्वागत किया। तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी या काली चौदस के रूप में मनाया जाने लगा।

आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व

काली चौदस केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, यह आत्मचिंतन और आत्मशुद्धि का प्रतीक भी है।

  • देवी काली हमारे भीतर की शक्ति हैं जो डर, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या और अहंकार जैसे अंधकार को समाप्त करती हैं।
  • नरकासुर का वध इस बात का प्रतीक है कि अन्याय और अहंकार चाहे कितना भी प्रबल क्यों न हो, अंततः धर्म और सत्य की ही विजय होती है।
  • दीप जलाना यह संदेश देता है कि एक छोटी-सी लौ भी घोर अंधकार को मिटा सकती है।

इस दिन हम केवल बाहरी दीप नहीं जलाते, बल्कि अपने मन के भीतर भी एक दीप जलाते हैं — सत्य, करुणा और प्रेम का दीप।

स्नान और शुद्धिकरण की परंपरा

काली चौदस की सुबह सूर्योदय से पहले उठकर तेल मालिश कर स्नान करने की परंपरा है। इसे अभ्यंग स्नान कहा जाता है। माना जाता है कि यह स्नान न केवल शरीर को बल्कि मन को भी शुद्ध करता है।

इस समय यह श्लोक कहा जाता है —

“अभ्यङ्गं च करिष्यामि हरस्नानं तु कर्मणाम्।
मम देहं शुद्धिं यातु पापनाशं च सर्वदा॥”

अर्थ — हे प्रभु! इस स्नान से मेरे शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि हो तथा मेरे सभी पाप नष्ट हों।

स्नान के बाद लोग घर की सफाई करते हैं, दीपक जलाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण व देवी काली की पूजा करते हैं।

यम दीपदान की परंपरा

काली चौदस की रात को यमराज के नाम का दीप जलाना अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। दीपक दक्षिण दिशा में घर के बाहर रखा जाता है और यह श्लोक कहा जाता है —

“मृत्युनाज्ञापितो दीपो दत्तोऽयमग्रतः मया।
तेन दीपेन मे पापं नश्यतामकृतं कृतम्॥”

अर्थ — हे यमराज! यह दीपक मैं आपके नाम से अर्पित करता हूँ। इससे मेरे पाप दूर हों और मुझे जीवन में भय से मुक्ति मिले।

रूप चौदस का महत्व

काली चौदस को भारत के कई हिस्सों में रूप चौदस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियाँ स्नान से पूर्व उबटन, हल्दी, बेसन, चंदन आदि का लेप लगाती हैं।
इस दिन का भाव यह है कि जैसे हम अपने शरीर को शुद्ध करते हैं, वैसे ही अपने मन को भी शुद्ध करें।

रूप चौदस के अवसर पर कहा गया है —

“शरीरं आद्यं खलु धर्मसाधनम्।”
(अर्थ: शरीर ही धर्म का प्रथम साधन है। इसे शुद्ध रखना ही सच्चा सौंदर्य है।)

इस दिन का सच्चा संदेश यह है कि सौंदर्य केवल बाहरी नहीं, बल्कि मन की निर्मलता में है।

काली पूजा और साधना

पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा जैसे राज्यों में काली चौदस की रात्रि को काली पूजा की जाती है। इस दिन भक्त देवी काली की आराधना करते हैं, जो अज्ञान और भय का नाश करने वाली देवी मानी जाती हैं।

काली माता की पूजा के समय यह मंत्र उच्चारित किया जाता है —

“ॐ क्रीं कालिकायै नमः।”

यह मंत्र देवी काली की ऊर्जा का आह्वान करता है। भक्त लाल फूल, चावल, दीपक और प्रसाद अर्पित करते हैं तथा उनसे प्रार्थना करते हैं —

“हे मां काली! मेरे भीतर के अंधकार को मिटा दो और मुझे धर्म के मार्ग पर चलने की शक्ति दो।”

घरेलू परंपराएँ और रीति-रिवाज

काली चौदस के दिन घर में नकारात्मकता को दूर करने के लिए कई पारंपरिक कार्य किए जाते हैं —

  1. घर की पूरी सफाई – यह केवल स्वच्छता नहीं बल्कि मानसिक शुद्धि का प्रतीक है।
  2. नमक और पानी से पोंछा लगाना – यह बुरी ऊर्जाओं को दूर करता है।
  3. नींबू-मिर्च लटकाना – बुरी नजर से बचाव के लिए।
  4. दीप जलाना – घर के द्वार पर दीप रखकर शुभ ऊर्जाओं का स्वागत किया जाता है।
  5. मिठाई और भोजन का वितरण – प्रेम, भाईचारे और एकता का प्रतीक है।

विभिन्न राज्यों में काली चौदस का स्वरूप

  • गुजरात में इसे “रूप चौदस” कहा जाता है और लोग रूप-सौंदर्य व स्वास्थ्य की पूजा करते हैं।
  • उत्तर भारत में इसे “छोटी दीपावली” कहा जाता है जहाँ दीप जलाकर घर को सजाया जाता है।
  • पश्चिम बंगाल में इस दिन “काली पूजा” का भव्य आयोजन होता है।
  • दक्षिण भारत में इसे “नरक चतुर्दशी” कहा जाता है और लोग सूर्योदय से पहले तेल स्नान कर दीपक जलाते हैं।

मानवीय और सामाजिक संदेश

काली चौदस केवल पूजा-पाठ का दिन नहीं है, बल्कि यह आत्म-संशोधन का अवसर है। यह दिन हमें सिखाता है कि —

  • अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, एक दीपक उसे मिटा सकता है।
  • बुरे विचारों और ईर्ष्या का अंत करना ही सच्चा नरकासुर वध है।
  • परिवार और समाज में प्रेम, करुणा और सहयोग फैलाना ही सच्ची काली पूजा है।

यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि जब तक हम अपने भीतर के अंधकार को नहीं मिटाएँगे, तब तक बाहरी दीपावली का प्रकाश अधूरा रहेगा।

उपदेशात्मक श्लोक

“तमसो मा ज्योतिर्गमय।”
(अर्थ: मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।)

यह वाक्य ही काली चौदस का सार है — अपने भीतर की अज्ञानता और पाप से निकलकर ज्ञान, शांति और प्रेम के प्रकाश की ओर बढ़ना।

निष्कर्ष

काली चौदस केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, बल्कि एक जीवन संदेश है। यह हमें यह सिखाती है कि जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का अंत किया, वैसे ही हमें अपने भीतर के “नरकासुर” — अर्थात् अहंकार, लालच, और क्रोध — को समाप्त करना चाहिए।

जब हम अपने भीतर का अंधकार मिटाते हैं, तभी हमारे जीवन में सच्ची दीपावली आती है। इसलिए इस काली चौदस पर केवल दीपक ही नहीं, अपने मन के भीतर भी एक दीप जलाइए — सत्य, प्रेम और सद्भाव का दीप।

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