दीपावली (दिवाली / दीपोत्सव)

परिचय

दीपावली या दिवाली भारत का एक प्रमुख और सबसे लोकप्रिय पर्व है। यह त्यौहार हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, एकता, प्रकाश, और आनंद का प्रतीक है। इसे दीपोत्सव भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन घर-घर दीप जलाकर अंधकार को दूर किया जाता है।

दीपावली का नाम आते ही लोगों के मन में उत्साह, उल्लास और जगमगाहट की भावना उत्पन्न होती है। यह त्योहार न केवल हिंदू धर्म में बल्कि जैन, सिख और आर्य समाज के अनुयायियों द्वारा भी अपने-अपने रूप में मनाया जाता है।

नाम और व्युत्पत्ति

‘दीपावली’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों से बना है — दीप अर्थात् दीपक या प्रकाश, और आवली अर्थात् पंक्ति या श्रृंखला। इस प्रकार दीपावली का अर्थ हुआ ‘दीपों की पंक्ति’।
अर्थात् इस दिन घरों, मंदिरों, और गलियों को दीपों की कतारों से सजाया जाता है। धीरे-धीरे यह शब्द प्राकृत और हिंदी में परिवर्तित होकर ‘दिवाली’ के रूप में प्रचलित हुआ।

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इतिहास

दीपावली का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। यह पर्व अत्यंत प्राचीन है और समय के साथ इसके स्वरूप में अनेक परिवर्तन हुए हैं।

  • स्कंद पुराण, पद्म पुराण, और वामन पुराण जैसे ग्रंथों में दीपावली को ‘दीपमालिका’ कहा गया है।
  • रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर और रावण का वध करने के बाद जब अयोध्या लौटे, तब नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। उसी से दीपावली की परंपरा प्रारंभ हुई।
  • जैन धर्म में यह दिन भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • सिख धर्म में इसे बंदी छोड़ दिवस कहा जाता है, जब गुरु हरगोबिंद साहिब जी को ग्वालियर किले से मुक्ति मिली थी।

इस प्रकार दीपावली का स्वरूप धार्मिक, सामाजिक और ऐतिहासिक परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ है।

महत्व

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

दीपावली अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार आत्मा के जागरण का संकेत देता है।
वेदों में भी कहा गया है —

“अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, और दुःख से सुख की ओर बढ़ें।”

इस पर्व का सार यही है कि हमें अपने भीतर के अंधकार — जैसे ईर्ष्या, क्रोध, लोभ और द्वेष — को मिटाकर सच्चाई, प्रेम, और करुणा के दीप जलाने चाहिए।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

दीपावली समाज में एकता और सद्भावना का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने परिवार, मित्रों और पड़ोसियों से मिलते हैं, उपहार और मिठाइयाँ बाँटते हैं, और पुराने विवादों को भुलाकर नई शुरुआत करते हैं।
यह पर्व लोगों को मिल-जुलकर जीने, दूसरों के सुख में भाग लेने और खुशियाँ बाँटने की प्रेरणा देता है।

आर्थिक महत्व

दीपावली के समय बाजारों में विशेष रौनक होती है। लोग नए वस्त्र, आभूषण, बर्तन, उपहार और मिठाइयाँ खरीदते हैं। व्यापारी वर्ग के लिए यह सबसे शुभ अवसर माना जाता है।
इस दिन कई जगहों पर नया बही-खाता खोलने की परंपरा होती है। छोटे कारीगरों, कुम्हारों, रंगसाजों और हस्तशिल्पियों के लिए यह समय आर्थिक दृष्टि से अत्यंत लाभकारी होता है।

समय और अवधि

दीपावली सामान्यतः पाँच दिनों तक चलने वाला उत्सव है। ये पाँच दिन निम्नलिखित हैं —

  1. धनतेरस (धनत्रयोदशी)
    यह दिन दीपावली का प्रथम दिन होता है। इस दिन धन, आरोग्य और समृद्धि की देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। भगवान धन्वंतरि के समुद्र मंथन से प्रकट होने के कारण इस दिन को धनतेरस कहा जाता है।
    लोग सोना, चाँदी या बर्तन खरीदते हैं, क्योंकि इसे शुभ माना जाता है।
  2. नरक चतुर्दशी (रूप चौदस / छोटी दिवाली)
    इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। यह दिन पवित्रता और रूप सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। लोग स्नान, दीपदान और सफाई करते हैं।
  3. मुख्य दिवाली (लक्ष्मी पूजा)
    कार्तिक अमावस्या की रात को दीपावली का मुख्य पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
    घरों को दीपों, रंगोली, और फूलों से सजाया जाता है। माना जाता है कि स्वच्छ और उज्ज्वल घर में लक्ष्मी का वास होता है।
  4. गोवर्धन पूजा (अन्नकूट / पड़वा)
    इस दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की घटना की स्मृति में पूजा की जाती है।
    लोग विविध प्रकार के भोजन बनाकर अन्नकूट का प्रसाद अर्पित करते हैं। यह पर्व कृषि और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है।
  5. भैया दूज
    दीपावली का अंतिम दिन भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है। बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक करती हैं और उसके दीर्घायु की कामना करती हैं। भाई भी बहन को उपहार देते हैं।

क्षेत्रीय विविधताएँ

भारत के विभिन्न राज्यों में दीपावली मनाने की रीति-रिवाजों में भिन्नता पाई जाती है।

  • उत्तर भारत में यह श्रीराम के अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाई जाती है।
  • पश्चिम बंगाल में इसी दिन काली पूजा का आयोजन होता है।
  • दक्षिण भारत में इसे नरक चतुर्दशी के रूप में अधिक प्रमुखता दी जाती है।
  • नेपाल में इसे तिहार कहा जाता है, जहाँ गाय, कुत्ते और मनुष्यों की पूजा की जाती है।
  • वाराणसी में दीपावली के पंद्रह दिन बाद देव दीपावली मनाई जाती है, जब गंगा घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं।

पर्यावरणीय दृष्टि और विवाद

समय के साथ दीपावली में पटाखों का अत्यधिक प्रयोग बढ़ गया है, जिससे वायु और ध्वनि प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है।
प्रदूषण से न केवल पर्यावरण बल्कि पशु-पक्षी और मनुष्यों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अतः आज के समय में आवश्यकता है कि हम दीपावली को पर्यावरण के अनुकूल बनाकर मनाएँ —
मिट्टी के दीये जलाएँ, स्थानीय कारीगरों की वस्तुएँ खरीदें और अनावश्यक पटाखों से बचें।
यही सच्चे अर्थों में ‘प्रकाश का पर्व’ होगा।

दीप और सजावट

दीपावली में दीपक या दीये जलाने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पुराने समय में लोग मिट्टी के दीप जलाते थे, अब उनके साथ बिजली की लड़ियाँ, मोमबत्तियाँ, और रंग-बिरंगे लैंप का भी उपयोग होने लगा है।
घरों में रंगोली बनाई जाती है, तोरण लगाए जाते हैं, और दरवाजों पर आम-पत्तियों की बंदनवार सजाई जाती है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रसार

आज दीपावली केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह विश्व के कई देशों में मनाई जाती है, जहाँ भारतीय समुदाय बड़ी संख्या में रहता है।
नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद, ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में दीपावली को राष्ट्रीय या सांस्कृतिक पर्व के रूप में मान्यता प्राप्त है।
यह पर्व भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का प्रमाण है।

निष्कर्ष

दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह मानवता, सद्भावना और प्रकाश का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितना भी अंधकार क्यों न हो, एक छोटा-सा दीप भी आशा की किरण जगा सकता है।

यह पर्व हमें प्रेरित करता है कि —

“अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, और दुःख से सुख की ओर बढ़ें।”

जब हम दीप जलाते हैं, तो वह केवल मिट्टी का दीपक नहीं होता, बल्कि हमारे भीतर की आशा, श्रद्धा और प्रेम का प्रकाश होता है।
इसी में निहित है दीपावली का वास्तविक संदेश — “प्रकाश फैलाओ, अंधकार मिटाओ।”

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