छठ पूजा 2025 : तिथि, व्रत विधान और सम्पूर्ण जानकारी
छठ पूजा 2025 की तिथि और पंचांग अनुसार जानकारी
नहाय खाय (पहला दिन) – शनिवार, 25 अक्टूबर 2025
खरना (दूसरा दिन) – रविवार, 26 अक्टूबर 2025
संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन) – सोमवार, 27 अक्टूबर 2025
उषा अर्घ्य (चौथा दिन) – मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025
षष्ठी तिथि प्रारंभ: 27 अक्टूबर 2025, दोपहर लगभग 02:05 बजे
षष्ठी तिथि समाप्त: 28 अक्टूबर 2025, दोपहर लगभग 01:30 बजे
इस प्रकार मुख्य छठ पूजा (सूर्य षष्ठी) का संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर और उषा अर्घ्य 28 अक्टूबर को होगा।
छठ पूजा की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
छठ पूजा भारत के सबसे प्राचीन पर्वों में से एक है। यह पर्व सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा (छठी माई) को समर्पित है।
“छठ” शब्द संस्कृत के “षष्ठी” शब्द से बना है, जिसका अर्थ है — छठा दिन।
छठ पूजा की शुरुआत वेदों के काल से मानी जाती है।
प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि आर्य लोग सूर्य की उपासना करते थे और उन्हें जीवन का आधार मानते थे।
ऋग्वेद में सूर्य की उपासना के लिए अनेक मंत्र हैं, जैसे — “ओम सूर्याय नमः”, जिनके माध्यम से सूर्य देव से स्वास्थ्य, ऊर्जा और दीर्घायु की कामना की जाती थी।
इतिहास में यह पूजा त्रेतायुग से जुड़ी मानी जाती है।
कहा जाता है कि जब भगवान राम अयोध्या लौटे और उनका राज्याभिषेक हुआ, तब माता सीता ने सूर्य देव की आराधना कर छठ व्रत रखा।
इसी तरह, महाभारत काल में भी यह व्रत किया गया — कहा जाता है कि कुंती पुत्र कर्ण, जो सूर्य देव के पुत्र थे, प्रतिदिन सूर्य को जल अर्पित करते थे। उन्हीं के समय से यह पूजा जनमानस में प्रचलित हुई।
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छठ पूजा क्यों मनाई जाती है
छठ पूजा सूर्य देव और छठी माई (उषा देवी) की आराधना के लिए की जाती है।
सूर्य देव को पृथ्वी पर जीवन का स्रोत माना गया है — वे ऊर्जा, प्रकाश, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करते हैं।
इस पूजा के माध्यम से मनुष्य सूर्य देव से आभार व्यक्त करता है और उनसे अपने परिवार के स्वास्थ्य, समृद्धि, संतान-सुख और दीर्घायु की प्रार्थना करता है।
छठी माई, जिन्हें उषा देवी भी कहा जाता है, संतान की रक्षक मानी जाती हैं।
माना जाता है कि छठ माई की कृपा से संतान को दीर्घायु, रोगमुक्ति और समृद्धि प्राप्त होती है।
इसलिए यह व्रत विशेषकर स्त्रियाँ अपनी संतान की कुशलता और परिवार की खुशहाली के लिए रखती हैं।
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छठ पूजा के पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण
छठ पूजा केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी गहरा है।
इस पूजा में सूर्य की किरणों के संपर्क में आने से शरीर में विटामिन डी की मात्रा बढ़ती है।
सूर्यास्त और सूर्योदय के समय की किरणें मानव शरीर के लिए सबसे लाभदायक होती हैं — इसलिए व्रती इन्हीं समयों में अर्घ्य देते हैं।
इसके अलावा, व्रत के दौरान निर्जल उपवास, स्वच्छता और सात्त्विक आहार शरीर को शुद्ध करने का कार्य करते हैं।
यह पर्व मनुष्य को अनुशासन, संयम और प्रकृति के प्रति सम्मान सिखाता है।
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छठ पूजा की अवधि और विधियाँ
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। प्रत्येक दिन की अपनी विशिष्ट विधि और धार्मिक महत्ता होती है।
पहला दिन – नहाय खाय
इस दिन व्रती स्नान करके घर की शुद्धि करते हैं।
नदी या तालाब से जल लाकर घर में भोजन तैयार किया जाता है।
व्रती लौकी, चने की दाल और चावल का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसे “नहाय खाय” कहा जाता है।
इस भोजन के साथ ही व्रत की शुरुआत होती है और व्रती सात्त्विक जीवन का संकल्प लेता है।
दूसरा दिन – खरना या लोहंडा
इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं।
संध्या समय सूर्यास्त के बाद व्रती गुड़ की खीर, गेहूं की रोटी और केले का प्रसाद बनाते हैं।
इस प्रसाद को सबसे पहले सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, फिर व्रती ग्रहण करता है।
इसी रात से व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जल व्रत आरंभ करते हैं।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य
इस दिन व्रती पूरे परिवार और श्रद्धालुओं के साथ नदी या तालाब के घाट पर जाते हैं।
वहां बांस की सुपली या डालिया में फल, ठेकुआ, नारियल और अन्य प्रसाद रखा जाता है।
सूर्यास्त के समय अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
इस अवसर पर घाटों पर दीप जलाए जाते हैं और चारों ओर भक्ति गीतों की गूंज होती है।
यह दृश्य अत्यंत मनमोहक और आध्यात्मिक होता है।

चौथा दिन – उषा अर्घ्य (भोर का अर्घ्य)
अगले दिन सूर्योदय से पहले व्रती पुनः घाट जाते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
यह अर्घ्य संतान की रक्षा, परिवार के कल्याण और सुख-समृद्धि के लिए दिया जाता है।
अर्घ्य के बाद व्रती जल ग्रहण करके व्रत का समापन करते हैं। इसे पारण कहा जाता है।
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कोशी भरने की परंपरा
कोशी भरना छठ पूजा की अत्यंत महत्वपूर्ण और भावनात्मक रस्म है।
यह संध्या अर्घ्य से पहले की जाती है।
इसमें मिट्टी या केले के तनों से मंडप बनाया जाता है, जिसमें पाँच या सात दीपक रखे जाते हैं।
इन्हें “कोशी” कहा जाता है।
कोशी भरने का अर्थ है — घर-परिवार की रक्षा और सूर्य देव से आशीर्वाद की याचना करना।
कोशी के दीपक परिवार की ज्योति और जीवन की रोशनी का प्रतीक माने जाते हैं।
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छठ पूजा के लोकगीत और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा के समय गाए जाने वाले भक्ति गीत, जैसे —
“केलवा के पात पर उगले सूरज देव” या “छठी माई के दर्शन पावे” —
न केवल भक्ति का भाव जगाते हैं, बल्कि लोकसंस्कृति को भी जीवंत बनाए रखते हैं।
यह पर्व सामूहिकता और एकता का प्रतीक है।
इसमें कोई जाति, वर्ग या धर्म का भेद नहीं होता — सभी लोग मिलकर घाट सजाते हैं और भक्ति में डूब जाते हैं।
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छठ पूजा का सार और संदेश
छठ पूजा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति केवल पूजा-पाठ में नहीं, बल्कि संयम, सादगी, और प्रकृति के प्रति सम्मान में है।
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि मानव जीवन का आधार प्रकृति ही है, और सूर्य देव उसकी सबसे बड़ी शक्ति हैं।
छठ पूजा वह अवसर है जब मानव अपने शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करता है और सूर्य से आशीर्वाद लेकर नवजीवन की शुरुआत करता है।