भाई दूज

बहन अपने भाई को राखी बांधते वक़्त तिलक करते हुए

भूमिका

भारत का हर पर्व प्रेम, श्रद्धा और पारिवारिक संबंधों की गहराई को दर्शाता है। दीपावली का पांचवां और अंतिम दिन भाई दूज (या भ्रातृ द्वितीया) के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के स्नेह, सुरक्षा और सच्चे रिश्ते का प्रतीक है।

जैसे रक्षा बंधन के दिन बहन भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी दीर्घायु की कामना करती है, वैसे ही भाई दूज के दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके सुख-समृद्धि और दीर्घ जीवन की प्रार्थना करती है। इस दिन भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है।

भाई दूज 2025 की तिथि और समय

वर्ष 2025 में भाई दूज का पर्व 26 अक्टूबर, रविवार के दिन मनाया जाएगा।

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  • द्वितीया तिथि प्रारंभ: 25 अक्टूबर 2025, रात्रि 09:11 बजे
  • द्वितीया तिथि समाप्त: 26 अक्टूबर 2025, रात्रि 07:58 बजे

इस प्रकार भाई दूज 26 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी, जब द्वितीया तिथि पूर्ण रूप से विद्यमान होगी।

भाई दूज का नाम और अर्थ

“भाई दूज” दो शब्दों से मिलकर बना है — “भाई” अर्थात भाई और “दूज” अर्थात चंद्रमा के द्वितीय दिन। इस प्रकार यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।

उत्तर भारत में इसे “भाई दूज” कहा जाता है, जबकि भारत के विभिन्न प्रांतों में इसके अलग-अलग नाम हैं —

  • बंगाल में इसे भाई फोटा,
  • महाराष्ट्र और गोवा में भाऊ बीज,
  • नेपाल में भाई टीका,
  • और दक्षिण भारत में यम द्वितीया कहा जाता है।

भाई दूज की कथा (यम और यमुना की कथा)

भाई दूज का सबसे प्रसिद्ध और प्रचलित प्रसंग यमराज और यमुना से जुड़ा है।

कहा जाता है कि सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया के दो संतान हुए — पुत्र यमराज और पुत्री यमुना। यमुना अपने भाई यमराज से अत्यंत स्नेह करती थीं और उन्हें बार-बार अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करती थीं। परंतु यमराज अपने कार्यों में व्यस्त रहते हुए कई बार टाल देते थे।

एक दिन जब कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि आई, तब यमराज ने अपनी बहन यमुना का निमंत्रण स्वीकार किया और उसके घर गए। यमुना ने अपने भाई का स्वागत-सत्कार किया, उन्हें स्नान कराया, तिलक लगाया और स्वादिष्ट भोजन कराया।

यमराज उसकी स्नेहपूर्ण सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान दिया —

“जो भी बहन इस दिन अपने भाई को आदरपूर्वक तिलक लगाएगी और उसका सत्कार करेगी, उस भाई को यम का भय नहीं रहेगा।”

तभी से यह परंपरा चली आ रही है और यह दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है।

भाई दूज की अन्य कथाएँ

कृष्ण और सुभद्रा की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया, तब वे अपनी बहन सुभद्रा से मिलने द्वारका आए। सुभद्रा ने उनके स्वागत में दीप जलाए, फूलों से आरती की और उनके माथे पर तिलक लगाया।
तब श्रीकृष्ण ने कहा कि “जो बहन अपने भाई का इस प्रकार आदर करेगी, वह भाई सदैव सुखी रहेगा।”

यह परंपरा भी भाई दूज पर्व का आधार मानी जाती है।

भाई दूज की पूजा-विधि

भाई दूज का दिन भाई-बहन के स्नेह को समर्पित होता है। पूजा-विधि सरल होते हुए भी अत्यंत भावनात्मक होती है।

तैयारी

  • बहन अपने घर में पूजा का स्थान सजाती है।
  • थाली में तिलक के लिए रोली, अक्षत, दीपक, मिठाई और नारियल रखती है।
  • एक चौकी पर रंगोली बनाकर उस पर भाई को बैठाया जाता है।

पूजा-विधि के चरण

  1. बहन सबसे पहले भाई के हाथों पर पवित्र जल डालकर उसे शुद्ध करती है।
  2. फिर भाई के माथे पर चंदन, रोली और अक्षत से तिलक करती है।
  3. तिलक के बाद आरती करती है और मिठाई खिलाती है।
  4. इसके बाद भाई को उपहार दिया जाता है।
  5. भाई अपनी बहन को उपहार या दक्षिणा देता है और उसकी रक्षा का वचन देता है।

कई स्थानों पर इस दिन गोदाना (गाय का दान) या अन्नदान की परंपरा भी निभाई जाती है।

भाई दूज के दिन का पारंपरिक भोजन

भाई दूज के अवसर पर घरों में विशेष प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। इसमें पूड़ी, हलवा, कचौरी, मिठाइयाँ, फल और सूखे मेवे शामिल होते हैं।

कई क्षेत्रों में इस दिन बहन अपने हाथों से भोजन बनाकर भाई को प्रेमपूर्वक खिलाती है, जो इस पर्व का सबसे भावनात्मक हिस्सा होता है।

भाई दूज का सांस्कृतिक महत्व

भाई दूज केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि पारिवारिक एकता और प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई-बहन के बीच की दूरी मिट जाती है और परिवार में स्नेह बढ़ता है।

यह पर्व हमें सिखाता है कि भाई-बहन का रिश्ता केवल रक्त का नहीं, बल्कि भावनाओं, जिम्मेदारी और सच्चे प्रेम का बंधन है।

भाई दूज और रक्षा बंधन में अंतर

हालांकि दोनों पर्व भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित हैं, फिर भी उनमें कुछ अंतर हैं —

विषयरक्षा बंधनभाई दूज
तिथिश्रावण पूर्णिमाकार्तिक शुक्ल द्वितीया
प्रतीकराखी बाँधनातिलक लगाना
उपहारभाई की ओर सेभाई और बहन दोनों एक-दूसरे को
उद्देश्यरक्षा का वचनप्रेम और आशीर्वाद का आदान-प्रदान

भाई दूज का आधुनिक रूप

आज के समय में जब पारिवारिक जीवन में दूरी बढ़ती जा रही है, भाई दूज का महत्व और बढ़ गया है। इस दिन चाहे बहन-भाई कितनी भी दूर क्यों न हों, वे एक-दूसरे से संपर्क करते हैं, वीडियो कॉल या संदेश के माध्यम से तिलक समारोह करते हैं।

कई जगह संस्थाएं और संगठन “भाई दूज उत्सव” का आयोजन करते हैं, जहाँ अनाथालयों और वृद्धाश्रमों में यह पर्व मनाया जाता है ताकि प्रेम और अपनापन सभी तक पहुँचे।

भाई दूज का सामाजिक संदेश

भाई दूज हमें यह सिखाता है कि संबंधों की असली ताकत प्यार और सम्मान में है।
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि —

  • परिवार का आधार परस्पर स्नेह और सहयोग है।
  • बहन का आशीर्वाद और भाई का स्नेह दोनों जीवन को संतुलित बनाते हैं।
  • प्रेम ही वह धागा है जो समाज और परिवार को एकता में बाँधता है।

भाई दूज से जुड़ी कहावतें और लोकगीत

भारतीय लोक संस्कृति में भाई दूज के अवसर पर कई लोकगीत गाए जाते हैं। इनमें बहनें भाई के मंगल की कामना करती हैं —

“आओ मेरे भैया दूज मनाएँ,
तिलक लगाएँ, मिठाई खिलाएँ।
सुख से रहो, दीर्घायु पाओ,
स्नेह हमारे संग निभाओ।”

कई क्षेत्रों में महिलाएँ पारंपरिक नृत्य और गीतों के माध्यम से अपनी भावनाएँ व्यक्त करती हैं।

धार्मिक दृष्टि से भाई दूज का महत्व

शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन यमराज स्वयं अपनी बहन यमुना के घर गए थे, इसलिए यह तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन स्नान, दान और तिलक करने से पापों का नाश होता है और यम का भय समाप्त होता है।

गरुड़ पुराण के अनुसार —

“यमद्वितीया तिथौ यः स्नाति दानं च ददाति च।
तस्य पापानि नश्यन्ति यमदर्शनजं भयम्॥”

अर्थात — जो व्यक्ति यम द्वितीया के दिन स्नान, दान और तिलक करता है, उसे यम का भय नहीं रहता।

समापन

भाई दूज का पर्व भारतीय संस्कृति में प्रेम, स्नेह और कृतज्ञता की भावना को उजागर करता है। यह केवल भाई-बहन का त्योहार नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान का उत्सव है।

जहाँ राखी एक वचन है, वहीं भाई दूज उस वचन की पूर्ति का उत्सव है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि —

“सच्चे रिश्ते भेंटों से नहीं, भावनाओं से बनते हैं।”

निष्कर्ष

भाई दूज हमें अपने रिश्तों की अहमियत समझाता है। यह दिन हमें सिखाता है कि परिवार में प्रेम, विश्वास और आदर ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति हैं।

दीपावली के इस अंतिम दिन जब बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती है, तो वह केवल एक अनुष्ठान नहीं करती — बल्कि अपने भाई के जीवन में उजाला, सुरक्षा और आशीर्वाद का दीप जलाती है।

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