दुर्गा पूजा

भारत को त्योहारों की धरती कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहाँ हर महीने कोई न कोई उत्सव आता है और लोगों के जीवन को रंगीन बना देता है। इन्हीं में से एक है दुर्गा पूजा, जो पूरे भारत में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाती है। खासतौर पर बंगाल, ओडिशा, असम और बिहार में तो यह केवल त्योहार नहीं बल्कि लोगों की भावनाओं का हिस्सा है।

दुर्गा पूजा क्यों मनाई जाती है?

बचपन से हम सबने सुना है कि सत्य की हमेशा विजय होती है। दुर्गा पूजा इसी विचार को जीवन में उतारती है।

कहानी के अनुसार, असुरों का राजा महिषासुर बहुत शक्तिशाली हो गया था। उसे यह वरदान मिला था कि कोई देवता या असुर उसे मार नहीं सकता। वरदान पाकर उसने देवताओं को ही परास्त कर दिया। तब सब देवताओं की शक्तियाँ मिलकर एक स्वरूप बनीं – वही थीं माँ दुर्गा। माँ ने नौ दिन तक युद्ध किया और अंत में महिषासुर का वध किया।

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यही कारण है कि यह उत्सव असत्य पर सत्य और अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक माना जाता है।

दुर्गा पूजा कब होती है?

दुर्गा पूजा हर साल आश्विन माह (सितंबर–अक्टूबर) में आती है। यह नवरात्र का ही रूप है। षष्ठी से पूजा शुरू होती है और दशमी के दिन माँ की विदाई होती है। बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में तो यह पूरे साल का सबसे बड़ा उत्सव होता है, जैसे उत्तर भारत में दीपावली।

पूजा की तैयारियाँ

अगर आपने कभी कोलकाता की दुर्गा पूजा देखी है तो समझ सकते हैं कि लोग इस पर्व के लिए कितने भावुक और उत्साहित होते हैं।

  • महीनों पहले से कारीगर मिट्टी की मूर्तियाँ बनाना शुरू कर देते हैं।
  • पंडालों की सजावट देखने लायक होती है – कहीं मंदिर जैसा, कहीं महल जैसा तो कहीं किसी आधुनिक इमारत जैसा।
  • मोहल्ले-मोहल्ले में समितियाँ बनती हैं और सब लोग मिलकर आयोजन करते हैं।

त्योहार का असली मज़ा इसी सामूहिक तैयारी में है।

पूजा कैसे होती है?

हर दिन का अपना महत्व है –

  • षष्ठी – कलश स्थापना और देवी का आवाहन।
  • सप्तमी – विशेष पूजा, नवपत्रिका की परंपरा।
  • अष्टमी – सबसे खास दिन, जब कन्या पूजन भी किया जाता है।
  • नवमी – माँ के उग्र रूप की पूजा होती है।
  • दशमी – माँ को विदा किया जाता है। बंगाल में इस दिन स्त्रियाँ सिंदूर खेलती हैं, एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देती हैं।

नवरात्र और दुर्गा पूजा

उत्तर भारत में लोग इसे नवरात्र कहते हैं। नौ दिनों तक लोग उपवास रखते हैं और हर दिन माँ के अलग-अलग स्वरूप की पूजा करते हैं – शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक।

केवल पूजा ही नहीं, संस्कृति का उत्सव

दुर्गा पूजा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक पर्व है।

  • ढाक (ढोल) की आवाज़ से माहौल गूंज उठता है।
  • महिलाएँ पारंपरिक परिधानों में सजती-संवरती हैं।
  • नाटक, नृत्य और गीतों से पंडाल जीवंत हो जाते हैं।

यह पर्व लोगों को जोड़ता है। अमीर-गरीब, छोटे-बड़े – सब एक साथ मिलकर आनंद मनाते हैं।

महिलाओं के लिए विशेष

माँ दुर्गा स्वयं नारी शक्ति का प्रतीक हैं। शायद यही कारण है कि इस पर्व में महिलाओं की भूमिका विशेष होती है। वे घर-घर जाकर अल्पनाएँ बनाती हैं, पूजा करती हैं और दशमी के दिन सिंदूर खेलकर एक-दूसरे के सुखी जीवन की कामना करती हैं।

आधुनिक स्वरूप

आज दुर्गा पूजा भारत से निकलकर विदेशों तक पहुँच गई है। अमेरिका, लंदन, दुबई – हर जगह भारतीय समुदाय इसे भव्य रूप से मनाता है।

अब पंडालों में थीम का चलन भी खूब है। कोई पंडाल ताजमहल जैसा होता है, तो कोई किसी ऐतिहासिक इमारत की तरह। लेकिन एक बात अब भी वही है – श्रद्धा और उत्साह।

दुर्गा पूजा हमें क्या सिखाती है?

  • बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अच्छाई अंत में जीतती है।
  • नारी शक्ति का सम्मान हर समाज की मजबूती है।
  • मिलजुलकर काम करने से ही बड़ा काम संभव है।

निष्कर्ष

दुर्गा पूजा भारतीय संस्कृति का आईना है। इसमें भक्ति भी है, कला भी और समाज को जोड़ने वाली शक्ति भी। माँ दुर्गा की पूजा हमें केवल धार्मिक आस्था ही नहीं देती, बल्कि यह विश्वास भी देती है कि अगर हम सही रास्ते पर हैं तो विजय निश्चित है।

सच कहूँ तो, दुर्गा पूजा सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि हमारे जीवन में शक्ति, प्रेम और एकता का उत्सव है।

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