तिथि – भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी
चतुर्थी तिथि प्रारंभ – 26 अगस्त 2025, रात 11:04 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त – 27 अगस्त 2025, रात 11:35 बजे
गणेश प्रतिमा स्थापना एवं पूजा का शुभ मुहूर्त –
27 अगस्त 2025 को प्रातः 09:00 बजे से 01:30 बजे तक सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
गणेश मंत्र – श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
अतः गणेश चतुर्थी बुधवार, 27 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी।
गणेश पूजा विधि
1. मूर्तिप्रतिष्ठा – शुभ मुहूर्त में गणेश जी की प्रतिमा को कलश स्थापना और मंगलाचरण के साथ विराजित करें।
2. स्नान और शुद्धि – प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएँ, फिर वस्त्र अर्पित करें।
3. आवाहन मंत्र – “ॐ गं गणपतये नमः” का जाप करते हुए गणेश जी का आह्वान करें।
4. अर्चना – गंध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा-दल, धूप और दीप अर्पित करें।
5. भोग – मोदक और लड्डू विशेष प्रिय हैं।
6. पाठ और मंत्र – गणेश अथर्वशीर्ष, गणेश स्तोत्र अथवा 108 बार “ॐ गं गणपतये नमः” का जप करें।
7. गणेश आरती – सुबह और शाम आरती करें तथा प्रसाद बाँटें।
8. व्रत नियम – दिनभर गणपति की सेवा और व्रत का पालन करें।
9. विसर्जन – दस दिन बाद अनंत चतुर्दशी (6 सितम्बर 2025, शनिवार) को गणेश विसर्जन किया जाएगा।
गणेश जी का जन्म कथा
एक बार माता पार्वती जी स्नान करने जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर पर लगे उबटन (हल्दी-चंदन के लेप) से एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए।
वह बालक ही गणेश कहलाए।
पार्वती जी ने आदेश दिया कि –
“जब तक मैं स्नान कर रही हूँ, कोई भी भीतर न आए।”
इसी समय भगवान शिव जी वहाँ पहुँचे। गणेश जी ने उन्हें रोक दिया।
शिव जी ने समझाया कि वे उनके पिता हैं, पर गणेश जी नहीं माने।
क्रोधित होकर शिव जी ने युद्ध में उनका शिरच्छेद कर दिया।
जब पार्वती जी बाहर आईं और यह देखा तो वे दुखी होकर संपूर्ण सृष्टि का विनाश करने को तैयार हो गईं।
देवताओं ने उन्हें शांत किया और शिव जी से प्रार्थना की।
तब शिव जी ने उत्तर दिशा से प्रथम जीव का सिर लाने का आदेश दिया। संयोग से एक हाथी का शिशु मिला। उसका सिर काटकर गणेश जी के धड़ से जोड़ा गया।
गणेश जी पुनः जीवित हुए और देवताओं ने उन्हें “सर्वप्रथम पूज्य” होने का आशीर्वाद दिया।
इसीलिए आज भी हर शुभ कार्य से पहले गणपति की पूजा होती है।
गणेश जी और वेदव्यास जी की कथा (महाभारत लेखन)
जब ऋषि वेदव्यास ने महाभारत की रचना करनी चाही, तो उन्हें एक ऐसे लेखक की आवश्यकता थी जो बिना थके निरंतर लिख सके। वे गणेश जी के पास पहुँचे और निवेदन किया।
गणेश जी ने शर्त रखी –
“आप बिना रुके श्लोक सुनाएँगे।”
व्यास जी ने भी अपनी शर्त बताई –
“आप श्लोक तभी लिखेंगे जब उसका अर्थ पूरी तरह समझ लें।”
दोनों की शर्तें मान्य हुईं और लेखन प्रारंभ हुआ।
गणेश जी इतनी तेज़ी से लिखने लगे कि बीच में उनकी कलम ही टूट गई।
लेकिन संकल्प तोड़ना उन्हें स्वीकार नहीं था। इसलिए उन्होंने अपना एक दाँत तोड़ लिया और उसे ही कलम बना लिया।
इसीलिए गणेश जी को एकदंत भी कहा जाता है।
इस प्रकार गणेश जी ने अपने दाँत से महाभारत का पूरा लेखन किया और यह महान ग्रंथ अमर हो गया।
इसी प्रकार से एक लाख श्लोकों वाला महाभारत ग्रंथ तैयार हुआ।
गणेश जी ने इसे लिखा और वेदव्यास जी ने कहा —
“जो मनुष्य इस ग्रंथ का पाठ करेगा, वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सब कुछ प्राप्त करेगा।”
सार
गणेश जी का जन्म माता पार्वती की शक्ति से हुआ।
वे प्रथम पूज्य हैं क्योंकि उन्होंने आज्ञा का पालन और धर्म की रक्षा की।
महाभारत का लेखन उनकी बुद्धि और परिश्रम का प्रतीक है।
गणेश जी केवल विघ्नहर्ता ही नहीं, बल्कि ज्ञान और लेखन के भी देवता हैं।