गोवर्धन पूजा

महीलाये गोवर्धन पुजा करती हुइ

भूमिका

भारत विविधताओं से भरा देश है। यहाँ प्रत्येक त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होता है, बल्कि उसमें जीवन के गहरे संदेश छिपे होते हैं। दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा या अन्नकूट उत्सव भी ऐसा ही पर्व है जो हमें प्रकृति, अन्न और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति कृतज्ञ बनना सिखाता है।

यह पर्व प्रेम, एकता, भक्ति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। इसे पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

वर्ष 2025 में गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी।

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  • दीपावली (अमावस्या तिथि) – 21 अक्टूबर 2025, मंगलवार
  • प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 21 अक्टूबर 2025, रात्रि 10:18 बजे
  • प्रतिपदा तिथि समाप्त – 22 अक्टूबर 2025, रात्रि 08:52 बजे

अतः गोवर्धन पूजा का शुभ दिन 22 अक्टूबर 2025 रहेगा। इसी दिन अन्नकूट उत्सव भी मनाया जाएगा।

गोवर्धन पूजा की कथा

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण गोकुल और वृंदावन में बाल्यकाल व्यतीत कर रहे थे, तब वहाँ के लोग वर्षा के देवता इंद्र की पूजा किया करते थे। वे मानते थे कि इंद्र की कृपा से वर्षा होती है और उनकी खेती फलती-फूलती है।

एक दिन श्रीकृष्ण ने उनसे प्रश्न किया — “हम इंद्र की पूजा क्यों करें? वर्षा का कारण तो गोवर्धन पर्वत है, जो बादलों को आकर्षित करता है, हमारे पशुओं को चरने के लिए घास देता है और जल के स्रोतों को जीवित रखता है। हमें उसी की पूजा करनी चाहिए जो सीधे हमारे जीवन से जुड़ा है।”

ब्रजवासी श्रीकृष्ण की बातों से सहमत हुए और इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के अन्न, मिठाइयाँ और पकवान बनाकर पर्वत को अर्पित किया, जिसे “अन्नकूट” कहा गया।

इंद्र को जब यह बात ज्ञात हुई तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने लगातार सात दिन तक भीषण वर्षा कर दी। ब्रजवासी भयभीत हो गए, तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा (छोटी) उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ग्वाल-बाल, गायों और लोगों को उसके नीचे शरण दी।

सात दिनों तक इंद्र का घमंड टूटा और अंततः उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा माँगी। तब से इस दिन को गोवर्धन पूजा के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई।

गोवर्धन पूजा का महत्व

यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति ही सच्चा देवता है। जब हम अपने परिवेश, अन्न और पर्यावरण का आदर करते हैं, तभी जीवन में संतुलन बनता है।

गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह मानव और प्रकृति के सह-अस्तित्व का प्रतीक है।

गोवर्धन पूजा की विधि

इस दिन लोग सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। फिर घर के आंगन या मंदिर में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाया जाता है। इसके चारों ओर दीपक, पुष्प, अक्षत और जल से पूजन किया जाता है।

लोग गाय, बछड़े, बैल, और पशुओं की पूजा करते हैं, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने इन्हीं के साथ ब्रज में बाल्यकाल बिताया था। गोवर्धन पूजा के समय गाय को गौमाता का रूप मानकर उनकी आराधना की जाती है।

अन्नकूट उत्सव का विशेष महत्व

गोवर्धन पूजा के साथ-साथ मनाया जाने वाला अन्नकूट उत्सव (जिसका अर्थ है – अन्न का पर्वत) इस दिन का सबसे प्रमुख आकर्षण होता है।

अन्नकूट का अर्थ और उद्देश्य

“अन्नकूट” शब्द संस्कृत के दो शब्दों से बना है – “अन्न” अर्थात् भोजन और “कूट” अर्थात् ढेर या पर्वत। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का ढेर बनाकर भोग लगाया जाता है, जो गोवर्धन पर्वत का प्रतीक होता है।

यह परंपरा उस दिन की स्मृति में है जब श्रीकृष्ण ने इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा के लिए अन्नकूट तैयार कराया था।

अन्नकूट में बनने वाले व्यंजन

अन्नकूट में सैकड़ों प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं। इनमें शामिल होते हैं —

  • पूड़ी, कचौरी, हलवा, लड्डू, पापड़ी, चूरमा, खीर,
  • सब्जियों में लौकी, टिंडा, गोभी, बैंगन, आलू, और भिंडी,
  • फलों में केला, सेव, अमरूद, नारियल,
  • पेय के रूप में मठा, दूध और दही।

कई मंदिरों में छप्पन भोग (56 प्रकार के व्यंजन) अर्पित किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाते समय सात दिन तक अन्न नहीं खाया था, इसलिए जब वर्षा समाप्त हुई, तो ब्रजवासियों ने उनके लिए छप्पन भोग तैयार किया।

अन्नकूट के अनुष्ठान

अन्नकूट तैयार करने के बाद भक्तजन उसे मंदिर में ले जाकर श्रीकृष्ण को अर्पित करते हैं। मंदिरों में इस दिन अन्न का पर्वत बनाकर श्रीकृष्ण के सम्मुख रखा जाता है और भव्य आरती की जाती है।

इसके बाद यह प्रसाद भक्तों में बाँट दिया जाता है।
इस अवसर पर भजन-कीर्तन, नृत्य और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का आयोजन किया जाता है।

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का महत्व

गोवर्धन पूजा का सबसे बड़ा आकर्षण गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा है। हजारों श्रद्धालु 21 किलोमीटर लंबी यह परिक्रमा करते हैं। माना जाता है कि इससे मनुष्य के सभी दुख दूर होते हैं और जीवन में समृद्धि आती है।

परिक्रमा करते समय लोग “जय गोवर्धनधारी गिरधारी लाल की जय” के जयकारे लगाते हैं। यह आस्था, समर्पण और भक्ति का अद्भुत संगम होता है।

भारत में गोवर्धन पूजा का उत्सव

  1. मथुरा और वृंदावन – यह पर्व यहाँ अत्यंत भव्य रूप से मनाया जाता है। मंदिरों में गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर पूजा की जाती है और अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
  2. गुजरात – यहाँ इसे “अन्नकूट” के रूप में मनाया जाता है। विशेष रूप से स्वामीनारायण मंदिरों में हजारों प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
  3. महाराष्ट्र – इस दिन बलिप्रतिपदा का पर्व भी साथ में मनाया जाता है।
  4. राजस्थान और हरियाणा – लोग अपने घरों में गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाते हैं और गाय-बछड़ों को सजाकर पूजा करते हैं।

गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक और पर्यावरणीय संदेश

यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार का उत्सव है। भगवान श्रीकृष्ण ने हमें यह सिखाया कि प्रकृति की पूजा ही वास्तविक पूजा है।

आज जब मानवता पर्यावरण संकट से जूझ रही है, तब गोवर्धन पूजा हमें यह याद दिलाती है कि —

  • हमें अन्न, जल, भूमि और पशुओं का आदर करना चाहिए।
  • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।
  • भगवान की सच्ची भक्ति कर्म, सेवा और प्रकृति-प्रेम में है।

श्रीकृष्ण और गोवर्धन का श्लोक

“गोवर्धनधारणं वन्दे, गोपगोप्यं सुखं प्रदम्।
गोविन्दं च सुरेशं च, प्रणमामि पुनः पुनः॥”

इस श्लोक का अर्थ है — मैं उस गोवर्धनधारी श्रीकृष्ण को बार-बार नमन करता हूँ, जिन्होंने गोपों और गोपियों को सुख और सुरक्षा प्रदान की।

समापन

गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव हमें यह सिखाते हैं कि भक्ति केवल आराधना नहीं, बल्कि आभार की भावना भी है।

यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि —

  • हमें अपने जीवन में अन्न का सम्मान करना चाहिए,
  • प्रकृति का आदर करना चाहिए,
  • और समाज में एकता बनाए रखनी चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उठाया गया गोवर्धन पर्वत केवल एक कथा नहीं, बल्कि अहंकार पर विनम्रता की विजय, मानव और प्रकृति के सामंजस्य, और भक्ति की सर्वोच्च भावना का प्रतीक है।

निष्कर्षतः, गोवर्धन पूजा वह पर्व है जो हमें हर वर्ष यह संदेश देता है कि —

“जब हम प्रकृति का आदर करते हैं, तो स्वयं भगवान हमारी रक्षा करते हैं।”

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