15 अगस्त भारत के इतिहास का सबसे गौरवशाली दिन है। 1947 में इसी दिन हमारा देश वर्षों की गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्र हुआ। यह सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि करोड़ों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान, त्याग और संघर्ष की गवाही है।
महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के मार्ग से लेकर भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे वीरों के अदम्य साहस तक—हर एक बलिदान ने इस आज़ादी की नींव को मजबूत किया।
आज का दिन हमें न केवल गर्व से भर देता है, बल्कि हमें यह याद भी दिलाता है कि आज़ादी सिर्फ अधिकार नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है। स्वतंत्र भारत का सपना तभी पूरा होगा, जब हम सभी अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करें और देश की प्रगति में योगदान दें।
लहराता हुआ तिरंगा हमें एकता, साहस और बलिदान की याद दिलाता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम जाति, धर्म और भाषा से ऊपर उठकर एक सशक्त, समृद्ध और विकसित भारत के निर्माण में साथ दें।
“वंदे मातरम्” और “जय हिंद” के जयकारे आज भी वही जोश भरते हैं, जो 1947 में था—क्योंकि आज़ादी का असली मतलब है, हर भारतीय का सम्मान और हर सपने का पूरा होना।
1947 की आज़ादी और आज की आज़ादी
1. 1947 में आज़ादी का असली मतलब
1947 में आज़ादी का अर्थ था विदेशी हुकूमत से मुक्ति। उस समय हमारा देश लगभग 200 साल तक अंग्रेजों की गुलामी झेल चुका था।
महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल और लाखों अनाम क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
उस दौर में आज़ादी का मतलब था — अपने देश का अपना शासन, अपनी ज़मीन पर अपना हक़, और अपने लोगों का सम्मान।
2. तब का दुश्मन साफ़ दिखता था
उस समय दुश्मन की पहचान साफ़ थी — यूनियन जैक के झंडे तले राज करने वाला अंग्रेज़ी साम्राज्य।
रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, तात्या टोपे, उधम सिंह जैसे वीर सीधे दुश्मन से लोहा ले रहे थे।
लोग जानते थे कि किससे लड़ना है और क्यों लड़ना है।
3. आज का अदृश्य दुश्मन
आज हमारे सामने कोई विदेशी सेना नहीं, लेकिन हमारे अपने देश के भीतर ही भ्रष्टाचार, भेदभाव, बेरोज़गारी, नफ़रत और असमानता जैसे दुश्मन मौजूद हैं।
ये दुश्मन न तो कोई यूनिफॉर्म पहनते हैं, न ही कोई झंडा लहराते हैं — लेकिन इनका असर हमारी आज़ादी को खोखला कर देता है।
4. तब का एकजुट भारत, आज का बंटा हुआ समाज
स्वतंत्रता संग्राम के समय लोग जाति, धर्म, भाषा और प्रांत से ऊपर उठकर एक झंडे के नीचे लड़ते थे।
आज, वही समाज छोटी-छोटी बातों में बंटा हुआ है। आज सभी जगहों पर कही जातिवाद या कही पर भाषा के आधार पर लोगों को बांटते है ।
5. आज़ादी की अधूरी लड़ाई
1947 में हमें राजनीतिक आज़ादी मिली थी।
लेकिन आर्थिक, सामाजिक और मानसिक आज़ादी अभी भी अधूरी है।
जब तक हर नागरिक को समान अवसर, सुरक्षा, शिक्षा और सम्मान नहीं मिलता — तब तक आज़ादी का सपना पूरा नहीं होगा।
6. क्या हम अभी भी आजाद है
इस वर्ष 2025 में भारत को आजाद हुए 78 वर्ष पूरे हो जायेंगे परंतु
हमारा देश ओर हम सभी भारत वाशी तब आजाद होंगे जब हमारी बेटियां व बहने मां सभी समाज के स्त्रियां स्वतंत्र रूप से बिना किसी भय के बाहर निकल सके ।
हमारे देश में कही भी किसी को भी छोटी जाती या बड़ी जाती के भींच भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए ।
लोग आपस में अपने धर्म को लेकर कभी भी कोई भी दंगा न हो
ऐसा होता है एक स्वतंत्र देश।
निष्कर्ष
तिरंगा सिर्फ़ आसमान में नहीं, हमारे दिलों में भी लहरना चाहिए।
अगर हम सच में “आज़ाद” होना चाहते हैं, तो हमें 1947 के क्रांतिकारियों की तरह साहस और एकता के साथ अपने अंदर और समाज में मौजूद बंधनों के खिलाफ लड़ना होगा।