भगवान शिव और भस्मासुर की कथा

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परिचय:
भारतीय धर्मग्रंथों में अनेकों कथाएँ हैं जो हमें धर्म, भक्ति और नीति का गहरा संदेश देती हैं। ऐसी ही एक अद्भुत कथा है भगवान शिव और भस्मासुर की, जो हमें अहंकार और विवेकहीनता के परिणामों के बारे में सिखाती है।

कथा:
पुराने समय की बात है, भस्मासुर नामक एक राक्षस ने घोर तपस्या के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न किया। जब भगवान शिव ने उसे वरदान माँगने को कहा, तो भस्मासुर ने माँगा कि जिसके सिर पर वह अपना हाथ रखे, वह तुरंत भस्म हो जाए। भोलेनाथ ने बिना सोचे-समझे उसे यह वरदान दे दिया।

वरदान पाकर भस्मासुर अहंकारी हो गया और स्वयं भगवान शिव को ही भस्म करने के लिए उनके पीछे दौड़ पड़ा। शिवजी अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। अंततः भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर को मोहित कर लिया। मोहिनी ने नृत्य करते हुए भस्मासुर को भी अपने नृत्य की नकल करने के लिए प्रेरित किया। नृत्य के दौरान मोहिनी ने ऐसा चमत्कारी मुद्रा बनाई कि भस्मासुर ने अनजाने में अपने ही सिर पर हाथ रख दिया, और उसी क्षण वह भस्म हो गया।

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शिक्षा:
यह कथा सिखाती है कि बिना विवेक के प्राप्त शक्ति अहंकार को जन्म देती है, और अंततः स्वयं के विनाश का कारण बनती है। साथ ही, यह भगवान विष्णु की बुद्धिमत्ता और शिवजी की सरलता का भी सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती है।

निष्कर्ष:
भगवान शिव और भस्मासुर की कथा हमें अपने जीवन में संयम, विवेक और विनम्रता बनाए रखने की प्रेरणा देती है। धर्मग्रंथों की कथाएँ न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि वे हमारे चरित्र निर्माण का भी माध्यम हैं।

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