प्रदोष व्रत क्या है?
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat / Pradosham) हिन्दू धर्म में एक अति पवित्र व्रत है जो भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। यह व्रत त्रयोदशी तिथि (चंद्रमा की तिथि 13) के समय होता है — शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में। इन दोनों में से एक त्रयोदशी तिथि जब सूर्यास्त के बाद “प्रदोष काल” में हो, तो उस दिन व्रत को विशेष शुभ माना जाता है।
“प्रदोष” शब्द का अर्थ है “प्रातः पूर्व संध्या या संध्या के समय” — यानी सूर्यास्त के आसपास का समय जब दिन समाप्त हो रहा हो और रात प्रारंभ हो रही हो। उस समय शिव की उपासना से व्रती को विशेष कृपा मिलती है।

महत्व और लाभ
प्रदोष व्रत के कई धार्मिक, आध्यात्मिक और मानसिक लाभ माने जाते हैं:
- पापों का क्षय होता है, जीवन में दोष दूर होते हैं।
- शिवजी की भक्ति और कृपा प्राप्त होती है — संकटों से मुक्ति, समृद्धि, शांति और सुख मिलते हैं।
- व्रत करने से मानसिक शुद्धि होती है, मन को एकाग्रता मिलती है, आत्म-चिंतन होता है।
- भोलेनाथ की स्तुति व पूजा विधियों से धार्मिक संस्कार मजबूत होते हैं।
पूजा विधि (उपाय / नियम)
प्रदोष व्रत करते समय नीचे दिए गए नियमों, विधियों का पालन किया जाता है:
- उपवास – कुछ भक्त पूरे दिन और रात के समय व्रत रखते हैं, कुछ लोग सुबह से लेकर प्रदोष काल (शाम) तक उपवास करते हैं।
- स्नान और शुद्धता – व्रत वाले दिन सुबह स्नान करें, शुद्ध वस्त्र पहनें।
- प्रदोष काल पूजा – सूर्यास्त के बाद जब त्रयोदशी तिथि बनी हो, उस समय शिवलिंग की पूजा करें। जल, दूध, दही, फल, बेलपत्र आदि अर्पित करें। दीपक, धूप-अगरबत्ती लगाएँ।
- मंत्र जाप और स्तुति – ‘ॐ नमः शिवाय’, शिवाष्टक आदि मंत्रों का जाप करें।
- भोजन / परिहार – कुछ लोग व्रत के पश्चात हल्का भोजन लेते हैं, कुछ उपवास पूरा करके भोजन करते हैं।
- दान-पुण्य – व्रत के दिन ब्राह्मण, जरूरतमंद, गरीबों को भोजन, कपड़ा, फल आदि दान करना शुभ माना जाता है।
कथा
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार:
एक बार एक साधु ने देखा कि एक व्यक्ति दिन-रात भटक रहा था, वह दुखी था। उसने पूछने पर बताया कि उसका पुत्र विवाह के बाद से बहुत अधर्म में लगा है, घर छुट गया है, ऋण ने घेरा है, स्वास्थ्य भी बिगड़ गया है। साधु ने उसे सलाह दी कि वह प्रदोष व्रत करें।
उसने उपवास शुरू किया, पूजा की विधिवत तैयारी की, भक्ति और श्रद्धा से शिवलिंग की सेवा की, प्रभातभक्ति और शाम की प्रदोष आराधना की। कुछ समय के बाद धीरे-धीरे पुत्र सुधर गया, घर लौटा, ऋण चुक गए, स्वास्थ्य में सुधार हुआ।
यह कथा यह सिखाती है कि श्रद्धा से किया गया प्रदोष व्रत व्यक्ति के जीवन में बड़े परिवर्तन ला सकता है। ऐसी कथाएँ विभिन्न शास्त्रों एवं लोकपरम्पराओं में मिलती हैं।
प्रदोष व्रत कब है — तिथि और मुहूर्त 2025 में
नीचे 2025 के कुछ मुख्य प्रदोष व्रतों की तिथियाँ और पूजा-मुहूर्त दिए हैं, खासकर आपके क्षेत्र (भारत) के लिए:
| तिथि | दिन | पक्ष / प्रकार | पूजा समय (प्रदोष मुहूर्त) |
| 5 सितंबर 2025 | शुक्रवार | शुक्ल पक्ष प्रदोष | शाम करीब 18:38 – 20:55 |
| 19 सितंबर 2025 | शुक्रवार | कृष्ण पक्ष प्रदोष | शाम करीब 18:21 – 20:43 |
| 4 अक्टूबर 2025 | शनिवार | शुक्ल पक्ष प्रदोष | पूजा समय लगभग 18:03 – 20:30 |
| 18 अक्टूबर 2025 | शनिवार | कृष्ण पक्ष प्रदोष | शाम करीब 17:48 – 20:20 |
| 3 नवम्बर 2025 | सोमवार | शुक्ल पक्ष प्रदोष | पूजा समय लगभग 17:34 – 20:11 |
| 17 नवम्बर 2025 | सोमवार | कृष्ण पक्ष प्रदोष | मुहूर्त लगभग 17:27 – 20:07 |
ध्यान दें: ये समय “प्रदोष काल” के हैं, जो सूर्यास्त के बाद शुरू होता है। तिथि या समय स्थान (जैसे शहर) के अनुसार थोड़ा अलग हो सकता है, इसलिए लोकल पंचांग देखें।
निष्कर्ष
प्रदोष व्रत हिन्दू धर्म में ऐसा अवसर है जब भक्त ईश्वर की ओर गंभीर श्रद्धा के साथ प्रवृत्त होते हैं। यह व्रत ना सिर्फ पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि जीवन में स्थिरता, शांति और आध्यात्मिक संतोष भी लाता है। सही तिथि पर, मुहूर्त का ध्यान रखते हुए, पूरी निष्ठा से किये गए प्रदोष व्रत से भगवान शिव की कृपा सुनिश्चित मानी जाती है।