तीज: श्रद्धा, प्रेम और नारी शक्ति का उत्सव

तीज सिर्फ एक त्यौहार नहीं यह दर्शाता है हिन्दू धर्म की खूबसूरती को।

तीज को कई जगह पर तीज़ा कहा जाता है। यह व्रत भाद्रपद  मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है।

इस दिन सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके गौरी शंकर की पूजा करती है ।

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इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शङ्कर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को  भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।

तीज से जुड़ी एक रोचक कथा भी है ।

बहुत प्राचीन समय की बात है। माँ पार्वती ने यह निश्चय किया था कि वे केवल भगवान शिव को ही अपने पति के रूप में स्वीकार करेंगी। इसके लिए उन्होंने कई जन्मों तक कठोर तप किया। उन्होंने १०७ जन्मों तक भगवान शंकर की तपस्या की फिर भी माता को शिव पति के रूप में प्राप्त नहीं हुए।

अपने 108वें जन्म में, उन्होंने हिमालय पर्वत पर जाकर फिर से तपस्या शुरू की — बिना अन्न-जल के, केवल शिव को पाने की लालसा में।

जब उनके पिता हिमवान ने उनका यह कष्ट देखा, तो वे चिंतित हुए और उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया।
लेकिन पार्वती जी इस विवाह के लिए तैयार नहीं थीं। उन्होंने अपनी सखी के साथ मिलकर वन में जाकर छुपकर कठोर तपस्या शुरू कर दी।

उसी दिन को हरतालिका तीज कहा गया:

“हर” = हरण (सखी द्वारा ले जाना)

“तालिका” = सखी


अंत में, माँ पार्वती की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।


इसलिए महिलाएं आज भी तीज पर व्रत रखती हैं, ताकि उन्हें माँ पार्वती जैसा अखंड सौभाग्य और पति का साथ मिले।

“तीज न सिर्फ एक व्रत है, बल्कि एक नारी की आस्था, प्रेम और प्रतीक्षा की वो पूजा है, जो उसे पार्वती-सी शक्ति और शिव-सा संग देती है।”

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