
तुलसी विवाह का महत्व
Tulsi vivah (Hindi: तुलसी विवाह, Gujarat: તુલસી વિવાહ, Tamil: துளசி கல்யாணம், Telugu: తులసి వివాహం) is the mythical marriage of Sri Krishna, an incarnation of Lord Vishnu with the tulsi plant (holy basil). In the Hindu mythology, tulsi is considered to be an incarnation of Goddess Lakshmi, and therefore unison of Gods and Goddesses is observed with great pomp and show all over the country.
तुलसी विवाह भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक सम्मानित है। तुलसी, जिसे ‘तुलसी देवी’ या ‘बेसिल’ कहा जाता है, का पवित्रता से गहरा संबंध है। इसे धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। भारतीय परिवारों में, तुलसी का पौधा घर के आंगन में अक्सर देखा जाता है, क्योंकि यह शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक है।
तुलसी विवाह मुख्यतः भगवान विष्णु के साथ तुलसी के विवाह के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है, जो इस वर्ष 13 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। इस दिन भक्तजन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, जिसमें तुलसी की डाली को शादी में सजाने का कार्य किया जाता है। तुलसी देवी को इस दिन नए कपड़े पहनाए जाते हैं और उनके साथ विधिवत विवाह की रस्म निभाई जाती है। यह आयोजन न केवल धार्मिक कर्मकांड है, बल्कि यह परिवार में सामूहिकता और प्रेम का प्रतीक भी है।
इतिहास में, तुलसी विवाह का आयोजन विशेष रूप से समृद्धि और खुशहाली के लिए किया जाता रहा है। इसे भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उन्नति के रूप में देखा जाता है। इस दिन भक्त लोग अपने घरों में तुलसी की पूजा के साथ-साथ पारिवारिक मेलजोल और सामंजस्य को भी बढ़ावा देते हैं। इस प्रकार, तुलसी विवाह न केवल एक धार्मिक प्रथा है, बल्कि यह समाज में एकता और शांति का भाव भी उत्पन्न करता है।

तुलसी विवाह की तैयारी
तुलसी विवाह, जिसे हिंदू संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, इसकी तैयारी में कई तत्व शामिल होते हैं। इस विशेष दिन को मनाने के लिए घर की सजावट सबसे पहले की जानी चाहिए। घर के मुख्य स्थानों को सजाने के लिए पारंपरिक फूल, रंग-बिरंगी लड़ियाँ और दीपक का उपयोग किया जाता है। इससे उत्सव का माहौल बढ़ जाता है और इस दिन की महत्ता उजागर होती है। विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, घर को सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक मानते हैं, इसलिए सजावट में विशेष ध्यान दिया जाता है।
तुलसी के पौधे की देखभाल भी इस समारोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे पवित्र माना जाता है और इसे विशेष ध्यान और प्रेम से तैयार करना चाहिए। पौधे को अच्छे से साफ करना और उसके चारों ओर की जगह को सजाना आवश्यक है। इसके लिए पूजा के लिए उपयुक्त वस्त्रों की व्यवस्था भी करनी होती है। तुलसी के पौधे की ठीक से देखभाल करने से यह प्रतीकात्मक रूप से एक अच्छे विवाह के लिए शुभ मानती है।
इसके अलावा, पूजा की सामग्री की व्यवस्था करना भी इस अवसर पर महत्वपूर्ण है। इसमें तुलसी के पत्ते, चावल, फूल, दीपक, धूप, और नैवेद्य आदि शामिल होते हैं। सभी सामग्रियों को समय पर इकठ्ठा कर लेना चाहिए। परिवार के सदस्यों की तैयारी भी जरूरी होती है, जिसमें सभी को इस दिन के लिए विशेष रूप से तैयार किया जाता है। पारंपरिक कपड़ों का चयन, जैसे कि साड़ी, कुर्ता, या अन्य पोशाक, इस पवित्र उत्सव की सुंदरता को और बढ़ाते हैं। इस प्रकार, तुलसी विवाह की तैयारी एक सामूहिक और सांस्कृतिक गतिविधि होती है जो परिवार के सभी सदस्यों को एकजुट करती है।
तुलसी विवाह की विधि
तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण हिंदू उत्सव है, जिसमें माता तुलसी और भगवान श्रीकृष्ण के बीच विवाह की पूजा की जाती है। इस पूजा की विधि का पालन करना बेहद महत्वपूर्ण है। विवाह की शुरुआत प्रातःकाल किये गए स्नान से होती है, जहां श्रद्धालु शुद्ध होकर पूजा की तैयारी करते हैं। इसके बाद, घर के आंगन में तुलसी के पौधे के पास मंडप सजाया जाता है।
तुलसी विवाह की पूजा सरल किन्तु विधिपूर्ण होती है। सबसे पहले, तुलसी के पौधे को शुद्ध जल से स्नान कराकर उसे नई वस्त्र पहनाए जाते हैं। फिर उसके पास एक श्रृंगार सामग्री रखी जाती है, जिसमें सुहाग सामग्री जैसे sindoor, chunari, और अन्य वस्त्र शामिल होते हैं। इसके बाद, श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को विराजमान करके उन पर फूलों की माला चढ़ाते हैं।
पूजा के दौरान, विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है, जैसे ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ और ‘ॐ तुलसी विवाह’। ये मंत्र प्रेम और समर्पण को दर्शाते हैं। इसके अलावा, तुलसी विवाह में विभिन्न रस्मों का पालन किया जाता है, जिनमें हल्दी, चूड़ा, और अन्य प्रकार के उत्सव शामिल होते हैं। शादी के इस पवित्र अवसर पर, भक्तों को माता तुलसी और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम प्रकट करना चाहिए।
विवाह समारोह के समय सभी श्रद्धालुओं को ध्यान में रखना चाहिए कि हर रस्म का पालन सच्चे मन से किया जाए। परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए, संतान सुख और स्वास्थ के लिए विशेष प्रार्थना की जाती है। इस प्रकार, तुलसी विवाह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति का भी एक मार्ग है।
तुलसी विवाह के बाद के पर्व
तुलसी विवाह, जो मुख्य रूप से तुलसी के पौधे की शादी के रूप में मनाया जाता है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व केवल एक धार्मिक समारोह नहीं है, बल्कि इसके बाद कई और पर्वों और त्योहारों का आयोजन भी होता है। इन पर्वों में छठ पूजा, करवा चौथ, और भैया दूज जैसे त्योहार शामिल हैं। इन सभी त्योहारों का सामाजिक और पारिवारिक महत्व है, जो भारतीय संस्कृति को और भी समृद्ध बनाते हैं।
छठ पूजा, विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय संतान सुख की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इस पूजा का आयोजन चार दिनों तक चलता है, जिसमें महिलाएँ व्रत रखकर सूर्य देव की आराधना करती हैं। तुलसी विवाह के बाद होने वाले इस पर्व में, परिवारिक एकता और सहयोग का महत्व बेहद प्रमुख होता है। यहाँ सास-बहू का रिश्ता और भी मजबूत बनता है, क्योंकि महिलाएँ पूजा की तैयारी और उत्सव के आयोजन में एक साथ काम करती हैं।
इसी प्रकार, करवा चौथ भी एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विवाहित महिलाएँ अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए मनाती हैं। इस दिन महिलाएँ दिनभर उपवास रखती हैं और रात को चंद्रमा के दर्शन के बाद अपने पतियों को पानी पिलाकर उपवास को समाप्त करती हैं। तुलसी विवाह के उत्सव के बाद, करवा चौथ का आयोजन एक प्रकार से पारिवारिक संबंधों को और मजबूत बनाता है। इस पर्व के दौरान, परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं, जो पारिवारिक संबंधों को स्थिरता और समर्पण के साथ बढ़ावा देता है।
इस प्रकार, तुलसी विवाह के बाद के पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक तथा पारिवारिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये त्योहार न केवल वैवाहिक संबंधों को मजबूत करते हैं, बल्कि समुदाय में एकता और भाईचारे का भी प्रतीक होते हैं।