भूमिका
भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर त्योहार केवल आनंद का अवसर ही नहीं होता बल्कि एक गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश भी देता है। विजयादशमी या दशहरा इन्हीं महत्त्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह पर्व अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है और नवरात्रि के नौ दिनों के उपरान्त आता है। विजयादशमी का अर्थ है – विजय का दसवां दिन, अर्थात वह दिन जब धर्म अधर्म पर, सत्य असत्य पर और न्याय अन्याय पर विजय प्राप्त करता है।
पौराणिक पृष्ठभूमि
विजयादशमी से जुड़ी दो प्रमुख कथाएँ प्रचलित हैं।
1. भगवान राम और रावण वध की कथा
उत्तर भारत में दशहरे का प्रमुख संबंध भगवान श्रीराम से है। रामायण के अनुसार, जब रावण ने माता सीता का हरण किया तो भगवान राम ने वानर सेना के सहयोग से लंका पर चढ़ाई की। नौ दिनों तक रावण और उसकी सेना के साथ युद्ध चलता रहा और दशमी के दिन श्रीराम ने रावण का वध कर दिया। इस प्रकार यह दिन धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक माना जाता है।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि चाहे असत्य कितना ही शक्तिशाली क्यों न लगे, अंततः सत्य की ही जीत होती है। इसीलिए दशहरे के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाकर बुराई का अंत करने का प्रतीकात्मक आयोजन किया जाता है।
2. माँ दुर्गा और महिषासुर वध की कथा
पूर्वी भारत विशेषकर बंगाल, असम और ओडिशा में विजयादशमी का संबंध देवी दुर्गा से है। पुराणों के अनुसार, महिषासुर नामक असुर ने देवताओं को पराजित कर त्रिलोक पर कब्ज़ा कर लिया था। तब देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दशमी के दिन उसका वध किया। इसीलिए नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा की पूजा होती है और दशमी के दिन देवी की विजय का उत्सव मनाया जाता है।
विभिन्न राज्यों में विजयादशमी का उत्सव
भारत की विविधता इस पर्व के उत्सव में स्पष्ट झलकती है। अलग-अलग राज्यों में इसे भिन्न-भिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
1. उत्तर भारत – रामलीला और रावण दहन
उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में दशहरा मुख्यतः भगवान राम की कथा से जुड़ा हुआ है।
- जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें कलाकार रामायण की घटनाओं का मंचन करते हैं।
- अंतिम दिन बड़े-बड़े मैदानों में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बनाए जाते हैं और उनमें आतिशबाज़ी भरकर जलाया जाता है।
- हजारों की भीड़ इस आयोजन को देखने आती है। यह बुराई के अंत और अच्छाई की विजय का प्रत्यक्ष प्रतीक बनता है।
2. पश्चिम बंगाल – दुर्गा पूजा और सिंदूर खेला
बंगाल में विजयादशमी को दुर्गा पूजा के समापन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- नवरात्रि के दौरान यहाँ भव्य पंडालों में माँ दुर्गा की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं।
- दशमी के दिन माँ दुर्गा की प्रतिमा का जल में विसर्जन किया जाता है।
- महिलाओं के बीच एक विशेष परंपरा होती है जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है। इसमें विवाहित महिलाएँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएँ देती हैं। इसे सौभाग्य, समृद्धि और सुखी दांपत्य जीवन का प्रतीक माना जाता है।
- इस दिन भावनाएँ मिश्रित होती हैं – माँ दुर्गा की विदाई का दुख और उनके अगले वर्ष पुनः आगमन की आशा।


3. महाराष्ट्र – शमी पूजा और सीमोल्लंघन
महाराष्ट्र में विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा करने की परंपरा है।
- लोग शमी के पत्ते को “सोना” मानकर एक-दूसरे को भेंट करते हैं।
- सीमोल्लंघन की परंपरा भी होती है जिसमें लोग गाँव या नगर की सीमाओं को पार कर लौटते हैं और शौर्य तथा विजय का प्रतीकात्मक उत्सव मनाते हैं।
- इसे नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ दिन माना जाता है।
4. कर्नाटक – मैसूर दशहरा
कर्नाटक में दशहरा को भव्य तरीके से मनाया जाता है, विशेषकर मैसूर का दशहरा तो विश्व प्रसिद्ध है।
- मैसूर महल को विशेष रूप से सजाया जाता है और यहाँ विशाल जुलूस निकलता है।
- हाथियों पर सजे-धजे हौदे में देवी की प्रतिमा बैठाई जाती है और पूरा शहर उत्सव में डूब जाता है।
- इसे राज्य का राजकीय पर्व माना जाता है।
5. तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश – गोलु उत्सव
दक्षिण भारत के तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में विजयादशमी के अवसर पर गोलु की परंपरा होती है।
- इसमें घरों में सीढ़ीनुमा मंच पर देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ सजाई जाती हैं।
- महिलाएँ और कन्याएँ भक्ति गीत गाती हैं और घर-घर जाकर प्रसाद ग्रहण करती हैं।
- दशमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है और बच्चे इस दिन अक्षरारंभ (शिक्षा की शुरुआत) करते हैं।
6. गुजरात – नवरात्रि और गरबा
गुजरात में नवरात्रि का उत्सव विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।
- नौ दिनों तक गरबा और डांडिया के कार्यक्रम होते हैं।
- दशमी को देवी दुर्गा का विसर्जन कर विजयादशमी मनाई जाती है।
7. नेपाल – दशैन उत्सव
नेपाल में विजयादशमी को दशैन कहा जाता है और यह वहाँ का सबसे बड़ा त्योहार है।
- इसमें देवी दुर्गा और उनके विभिन्न रूपों की पूजा होती है।
- बुज़ुर्ग अपने परिवार के सदस्यों को टीका और जमरा देकर आशीर्वाद देते हैं।
- पूरा देश उत्सव के वातावरण में डूब जाता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
विजयादशमी केवल धार्मिक पर्व ही नहीं है बल्कि यह समाज को अनेक मूल्य भी सिखाता है—
- सत्य और धर्म की विजय : चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ हों, अंततः सत्य की जीत होती है।
- एकता और सामूहिकता : इस दिन होने वाले सार्वजनिक आयोजन समाज को एकजुट करते हैं।
- नारी शक्ति का महत्त्व : माँ दुर्गा के रूप में स्त्री की शक्ति की पूजा की जाती है।
- नवीनता का आरंभ : इसे नए कार्य, व्यापार या शिक्षा शुरू करने का शुभ दिन माना जाता है।
आधुनिक समय में विजयादशमी
आज के युग में विजयादशमी का महत्व और भी बढ़ गया है। बढ़ते तनाव, भ्रष्टाचार और सामाजिक बुराइयों के बीच यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि यदि हम सत्य और धर्म के मार्ग पर अडिग रहें तो सफलता निश्चित है। साथ ही यह पर्व सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने का भी अवसर है।
निष्कर्ष
विजयादशमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि यह भारतीय संस्कृति की आत्मा को प्रकट करता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि चाहे बुराई कितनी भी बलवान क्यों न हो, अंततः जीत अच्छाई की ही होगी। उत्तर भारत में रावण दहन हो, बंगाल का सिंदूर खेला हो, महाराष्ट्र का शमी पूजन हो या कर्नाटक का मैसूर दशहरा — हर जगह यह पर्व एक ही संदेश देता है कि “धर्म की सदा विजय होती है।”